Sunday 23 March 2014

23/3/2014

IFWJ, bhopal
भोपाल 23 मार्च 2014। पत्रकार भवन समिति के निर्वाचन में चार संचालक मंडल के सदस्य निर्वाचित घोषित किए गए, जिनमें सर्वश्री विश्वेश्वर शर्मा अध्यक्ष, केडी सिंह उपाध्यक्ष, राजेश विश्वकर्मा सचिव एवं प्रवीण सक्सेना को कोषाध्यक्ष चुना गया।
इसके अतिरिक्त के संचालक मंडल के लिए इंडियन फेडरेशन वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश चंद्र वर्मा, प्रदेश महासचिव सलमान खान, जिला इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र कश्यप व सचिव जवाहर सिंह, दानदाता अनिल कुमार शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया एवं अधिकारी वर्ग से अशोक मनवानी को संचालक के पद पर समायोजित किया गया। यह घोषणा आज ए-6 माचना कॉलोनी में चुनाव कार्यक्रम संपन्न होने के बाद चुनाव अधिकारी श्री राजू खत्री ने की। चुनाव कार्यक्रम से पूर्व शहर के पत्रकारों का होली मिलन समारोह एवं साधारण सभा का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी सं या में पत्रकारों ने भा

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Wednesday 19 March 2014

बेहतर इलाज के अभाव में चल बसा एक जुझारू पत्रकार! क्या इतने बेबस हैं हम?

त्रकार राजेश दुबे की असामयिक मौत ने पत्रकार जगत को झकझोरकर रख दिया। यकीन करना मुश्किल था वे नहीं रहे, उनके जाने के बाद टेसुए बहाने वाले लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। सभी अपने आपको उस दिवंगत महान आत्मा पत्रकार के ज्यादा से ज्यादा करीब बता रहे थे। ग़मगीन लोगों के हुजूम को देखकर सहसा यकीन करना भी मुश्किल था कि ये वही स्वनाम धन्य पत्रकार राजेश दुबे हैं जो उचित इलाज ना मिलने की वजह से इस दुनिया से रुखसत हो गए।
वरिष्ठ पत्रकार और एमपी न्यूज लाइव डॉट कॉम के संपादक श्री राजेश दुबे का स्वास्थय काफी दिनों से खराब चल रहा था। उन्हें 01 जनवरी को पीपुल्स हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था , जहां पर उनका उपचार चल रहा था लेकिन उनकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ उस वक्त जनसंपर्क, ऊर्जा एवं खनिज साधन मंत्री राजेन्द्र शुक्ल उनकी मिजाजपुर्सी के लिए पहुंचे थे। कहने को तो उन्होंने श्री राजेश दुबे के स्वास्थ्य तथा उपचार की जानकारी भी ली। बावजूद इसके उन्हें समय रहते उचित आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना जरुरी नहीं समझा गया । संभवतः उन दिनों काल भी सहृदय हो उठा था। अच्छी खबर आई कि दुबे जी अस्पताल से लौट गए हैं। लेकिन, इस ख़ुशी की उम्र भी ज्यादा लम्बी नहीं थी। उनकी तबियत फिर से बिगड़ने लगी और वे फिर से अस्पताल पहुंचा दिए गए।
यहाँ उल्लेखनीय है कि निधन से एक रात्रि पूर्व मेडिकल स्टोर ने दवाई देना बंद कर दिया था. हैरत की बात यह है कि मुख्यमंत्री द्वारा अपने प्रमुख सचिव को पूरी मदद करने के निर्देश के बावज़ूद यह स्थिति उत्पन्न हुई थी। प्रदेशवासी मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के मुखारविंद से कई बार स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिली अनिर्वचनीय सफलता का मंगलगान सुन चुके होंगे, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वजह है कि मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद स्वास्थ्य महकमा राजेश दुबे जैसे पत्रकार के इलाज के लिए समुचित उपाय नहीं कर सका ? खेद का विषय है कि पत्रकार कल्याण की दुहाई देने वाली मध्यप्रदेश सरकार एक वरिष्ठ पत्रकार के उचित इलाज का समुचित प्रबंध न कर सकी ।
निधन से कुछ दिन पूर्व दुबे जी की बिटिया ने सोशल नेट्वर्किंग साईट फेसबुक पर उनकी बिटिया ने मदद की अपील करते हुए राजेश दुबे जी के इलाज में आर्थिक अभाव व उनके उचित व समुचित इलाज में आ रही दिक्कतों का जिक्र किया था। उस वक्त कई पत्रकारों ने बिटिया से बैंक अकांउट डिटेल, पता तथा कुछ अन्य जानकारी मांगी गयी थीं ताकि वे उनके अकाउंट में तत्काल पैसा जमा या ट्रांसफर करा सकें तथा मिलजुल कर दुबे जी के इलाज के लिये आवश्यक रकम जुटा सकें, लेकिन दुर्भाग्यवश उस पोस्ट पर न तो बिटिया का उसके बाद फिर कोई कमेण्ट आया और न ही कोई अन्य नई पोस्ट उनकी वाल पर आई। शायद तब तक वह इस स्थित्ति में ही नहीं रही होगी कि दुबारा उक्त सोशल नेट्वर्किंग साईट को लाग इन कर सके। हाँ कुछ पत्रकारों की मानवीय मदद ने इस परिवार को मानसिक संबल और कुछ मदद दी ,लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था ।
दूसरी तरफ़ यह भी बताया जा रहा है कि मात्र दो लाख रूपये की मदद की फ़ाइल आधिकारियों की मेज पर पडी रह गयी और एक ईमानदार पत्रकार समुचित इलाज के अभाव में चल बसा। आर्थिक मदद से अधिक यदि राज्य सरकार पत्रकार साथी के इलाज का समुचित प्रबंध करती तो मुख्यमंत्री की पत्रकार कल्याण नीति की सार्थकता तय हो जाती ।
रेखांकित करने योग्य तथ्य है कि यह मसला सिर्फ राजेश दुबे तक सीमित नहीं है। विगत वर्षों में इस तरह की कई घटनाएं सामने आई जिसमे देखा गया कि मीडिया घरानों के मालिको ने खुद आगे बढ़कर मदद की पेशकश करने की जहमत नहीं उठाई। जनसम्पर्क विभाग द्वारा मदद दी जाती है लेकिन वह मदद इतने न्यून स्तर की होती है कि पीड़ित को विशेष लाभ नहीं मिल पाता। वर्ष 2012 में पत्रकाओं के लिए विभाग में बीमा योजना लागू की गयी लेकिन इस बावत प्रचार और प्रसार नहीं किया गया। यही वजह है कि कई जरुरतमंद पत्रकार इस योजना का लाभ नहीं ले पाए।
बड़े शहरों के कद्दावर पत्रकार जो कांट्रेक्ट पर काम करते हैं उन्हें आर्थिक रूप से ऐसी मदद की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वे शानदार पैकेज पर काम करते हैं, लेकिन ऐसे पत्रकारों की संख्या अत्यंत सीमित है। सरकार और प्रशासनिक स्तर पर ऐसे पत्रकार रसूखदार होते हैं। यही वजह है कि वर्ष 2013 में जनसंपर्क ने इस योजना को ठंढे बस्ते में डाल दिया और यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी।
इस बारे में जनसम्पर्क मंत्री और मुख्यमंत्री से पूछे जाने पर हर बार जवाब मिलता रहा कि यह योजना शीघ्र लागू होगी। यहाँ स्वाभाविक सा नतीजा सामने आता है कि आश्वासन की गोली देने में जब पत्रकारों को नहीं बख्शा गया तो आम जनता किस खेत की मूली है। श्री राजेश दुबे जी के निधन के बाद सोशल नेट्वर्किंग साईट फेसबुक पर उनके मित्र पत्रकार बंधुओं द्वारा खुलकर इस मुद्दे पर बहस छेडी गयी ।
श्री राजेश दुवे जी के एक मित्र विह्वल होकर लिखते हैं–“ बेशक जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है,लेकिन यहाँ दुबे जी के साथ हमारी पत्रकार बिरादरी न्याय नहीं कर पाई, जब उन्हें बेहतर इलाज़ की जरुरत थी, दिल्ली भेजना था धन के अभाव में हम सभी ने एक होकर उनके परिवार की मदद नहीं की ,यहाँ तक कि सरकार से मिलने वाली मदद उन के दो बार सीरियस होने तक नहीं पहुंची।
एक अन्य मित्र कहते हैं– “ जो पत्रकारिता के मार्ग से विलग हो गए हैं, होना चाहते हैं या तटस्थ हैं उन्हें राजेश दुबे जैसी तकलीफ शायद न झेलना पडे लेकिन जो वाकई पत्रकारिता करना चाहते हैं, कर रहे हैं उन्हें तकलीफों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सीधी सी बात है, अक्सर अपने लेखों में "गुणा भाग" शब्द का प्रयोग करने वाला पत्रकार अपने बैक बेलेंस में इजाफे के लिए कोई "गुणा भाग" न कर सका और अंततः जीवन का बही-खाता बंद कर शून्य में विलीन हो गया। लेकिन पत्रकारिता हेतु संघर्षरत तमाम पत्रकारों के लिए यह एक हताशाजनक उदाहरण है।
एक महान पत्रकार के प्रति अपने इस उपेक्षापूर्ण रवैये पर सरकारी तंत्र को यकीनन मातम मनाना चाहिये लेकिन दुबे जी के अंतिम संस्कार के दौरान फोटो खिंचवाने की जैसी होड़ लगी थी उसे देखकर ऐसा कुछ होने की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती। जोड़ तोड़ और सेटिंग के जमाने में जहां सिर्फ एक नेत्र इलाज जैसी अन्य बिमारियों के लिए के लिए लोग सरकार के पत्रकार कल्याण कोष से चार-चार दफे राशि झटक ले जाते हैं वहां अगर दुबे जी जैसे सच्चे पत्रकार बिना इलाज इस दुनिया से चले भी गए तो क्या? श्री राजेश दुबे जी को भी अंततः वही सजा मिली जो अक्सर ईमानदार लोगों के हिस्से में आती है।
पत्रकार वर्ग सावधान!
बेईमानी नहीं कर सकते तो सर पर फटा हुआ कफ़न बाँध लो !!! और हाँ अपने बुरे वक्त का आर्थिक प्रबंधन भी स्वयं कर लो !!!

Monday 10 March 2014

रीप्रकाश दीक्षित द्वारा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान को भेजा गया पत्र 26फरवरी, 2014

रीप्रकाश दीक्षित द्वारा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान को भेजा गया पत्र
26फरवरी, 2014
माननीय मुख्यमंत्री जी,
मध्यप्रदेश।
विषयः- पत्रकार कोटे के मकानों की अराजक स्थिति ।
संदर्भः- मेरी जनहित याचिका पर हाईकोर्ट जबलपुर का आदेश।
मान्यवर,
निवेदन है की प्रेसपूल से एलॉट किए गए सरकारी मकानों को लेकर भोपाल मे लगभग अराजक स्थिति है। इस कोटे के मकानों के आवंटन के लिए बनाए गए एक भी नियम का कभी भी पालन नहीं किया गया है। प्रदेश के गृहमंत्री शासकीय सेवकों को आवंटित मकानों की तो हमेशा मानिटरिंग करते रहे हैं और बेदखली के निर्देश संबंधी प्रेसनोट अखबारों मे छपवाते रहे हैं, पर इस कोटे के मकानों की मानिटरिंग का साहस वे कभी नहीं जुटा पाए? इस कोटे की आड़ मे मकानों की खूब बंदरबांट होती रही है। बिडला आदि मीडिया ग्रुप को पत्रकार के नाम पर आफिस के लिए बंगले एलाट किए गए हैं। नेताओं को पत्रकार बना कर सरकारी मकानों का सुख दिलाया जा रहा है।
मीडिया से जुडे विभाग से रिटायर होने के बाद मैने इस बारे मे सूचना के अधिकार से जानकारी हासिल कर डेढ बरस पहले हाईकोर्ट मे जनहित याचिका दायर की थी। सरकार से इस याचिका पर कोई जवाब देते नहीं बना। इस पर कोर्ट ने पिछले महीने एकतरफा आदेश पारित कर दिया है। आदेश मे याचिका में उठाए गए मुददो पर आवश्यक कार्रवाई कर 30-04-2014 तक मुझे अवगत कराने की जवाबदारी प्रमुख सचिव, गृह को सौंपी गई है।
मैं अच्छी तरह जानता हूं की मीडिया से जुडे इस संवेदनशील मुददे पर कोई भी फैसला आपके ही दरबार में होना है। इसलिए औपचारिक रूप से प्रमुख सचिव, गृह का दस्तावेजों के साथ सूचित करने के बाद इस पत्र द्वारा आपसे विनती कर रहा हूं की याचिका में मेरे द्वारा उठाए प्रत्येक मुददे पर दलीय हितों से परे होकर बिना भय और पक्षपात के पूरी ईमानदारी से कार्रवाई करने की कृपा करें।
भवदीय
श्रीप्रकाश दीक्षित
एचआईजी-108,गोल्डन वैली हाईटस
आशीर्वाद कालोनी के पीछे,कोलार रोड
भोपाल-462042
मोबाईल-9893268142

Wednesday 5 March 2014

shalabhbadoriya

मित्रो.. 
आप लोगों की मर्दानगी देखली। दो दिन हो गये वेज बोर्ड का सन्देश पोस्ट किये, आप लोगों ने उसे छुआ तक नहीं, शायद देखा भी नही हो मालिकों और उनके दलालों के भय से। 
आप लोग पत्रकार हो वाह। बस संगठन आपके लिये लडे और वेतन दिलादे बस हम बेशर्मो की तरह लाभ भर ले लें।और संगठन की सदस्यता तक अखबार मालिकों से या उनके दलालों से पूछ कर लें। दरअसल हम मे से कई उन दलालों से भी बुरे और बडे धन पशु हो गये हैं उन्हैं इस वेतन के पेशों से कोई फर्क नहीं पड़ता दरअसल उन्हें वेतन मिलता ही नहीं है। वे यातो इधर उधर से जुगाड कर लेते हैं या मालिकों के ठेके पर काम करते हैं और हमारे सीधे सादे भाइयों जो अपने काम से काम रखते हैं जिन्हें चमचा गिरी नहीं सुहाती या उन्हें नहीं आती । का मालिकों को खुश करने के लिये उनका शोषण करते हैं। हमारा मानना है कि जो पत्रकार अपने लिये अपने बच्चों के लिये नहीं लड सकता वो कुछ भी हो सकता है पत्रकार नहीं हो सकता। 
अरे हम हैं कुछ पागल जिन्होंने ठेका ले रखा है आप जैसे मन से अपाहिजों के लिये लडना का कमसे कम अरे चर्चा तो करो माहौल तो गर्म करो यदि स्वयं को बुद्धी जीवी समझते हो तो। हम जैसों के लिये ही बाल कवि बैरागी जी वे यह कविता लिखी है। 
एक दिन सूर्य से इतना भर मैने कहा,
आपके साम्राज्य मे इतना अंधेरा क्यों रहा। 
तमतमा कर वो दहाड़ा मै अकेला क्या करूं, 
तुम निकम्मों के लिये मैं भला कब तक मरूं। 
आकाश की आराधना के चक्करों मे मत पडो, 
संग्राम छह घनघोर है कुछ मैं लूं कुछ तुम लडो।
अगर किसी को बुरा लगा हो तो मैंसमझूंगा कि मेरा मकसद। कुछ हद तक पूरा हो रहा है। 
""शलभ भदौरिया """