मित्रो..
आप लोगों की मर्दानगी देखली। दो दिन हो गये वेज बोर्ड का सन्देश पोस्ट किये, आप लोगों ने उसे छुआ तक नहीं, शायद देखा भी नही हो मालिकों और उनके दलालों के भय से।
आप लोग पत्रकार हो वाह। बस संगठन आपके लिये लडे और वेतन दिलादे बस हम बेशर्मो की तरह लाभ भर ले लें।और संगठन की सदस्यता तक अखबार मालिकों से या उनके दलालों से पूछ कर लें। दरअसल हम मे से कई उन दलालों से भी बुरे और बडे धन पशु हो गये हैं उन्हैं इस वेतन के पेशों से कोई फर्क नहीं पड़ता दरअसल उन्हें वेतन मिलता ही नहीं है। वे यातो इधर उधर से जुगाड कर लेते हैं या मालिकों के ठेके पर काम करते हैं और हमारे सीधे सादे भाइयों जो अपने काम से काम रखते हैं जिन्हें चमचा गिरी नहीं सुहाती या उन्हें नहीं आती । का मालिकों को खुश करने के लिये उनका शोषण करते हैं। हमारा मानना है कि जो पत्रकार अपने लिये अपने बच्चों के लिये नहीं लड सकता वो कुछ भी हो सकता है पत्रकार नहीं हो सकता।
अरे हम हैं कुछ पागल जिन्होंने ठेका ले रखा है आप जैसे मन से अपाहिजों के लिये लडना का कमसे कम अरे चर्चा तो करो माहौल तो गर्म करो यदि स्वयं को बुद्धी जीवी समझते हो तो। हम जैसों के लिये ही बाल कवि बैरागी जी वे यह कविता लिखी है।
एक दिन सूर्य से इतना भर मैने कहा,
आपके साम्राज्य मे इतना अंधेरा क्यों रहा।
तमतमा कर वो दहाड़ा मै अकेला क्या करूं,
तुम निकम्मों के लिये मैं भला कब तक मरूं।
आकाश की आराधना के चक्करों मे मत पडो,
संग्राम छह घनघोर है कुछ मैं लूं कुछ तुम लडो।
अगर किसी को बुरा लगा हो तो मैंसमझूंगा कि मेरा मकसद। कुछ हद तक पूरा हो रहा है।
""शलभ भदौरिया """
आप लोगों की मर्दानगी देखली। दो दिन हो गये वेज बोर्ड का सन्देश पोस्ट किये, आप लोगों ने उसे छुआ तक नहीं, शायद देखा भी नही हो मालिकों और उनके दलालों के भय से।
आप लोग पत्रकार हो वाह। बस संगठन आपके लिये लडे और वेतन दिलादे बस हम बेशर्मो की तरह लाभ भर ले लें।और संगठन की सदस्यता तक अखबार मालिकों से या उनके दलालों से पूछ कर लें। दरअसल हम मे से कई उन दलालों से भी बुरे और बडे धन पशु हो गये हैं उन्हैं इस वेतन के पेशों से कोई फर्क नहीं पड़ता दरअसल उन्हें वेतन मिलता ही नहीं है। वे यातो इधर उधर से जुगाड कर लेते हैं या मालिकों के ठेके पर काम करते हैं और हमारे सीधे सादे भाइयों जो अपने काम से काम रखते हैं जिन्हें चमचा गिरी नहीं सुहाती या उन्हें नहीं आती । का मालिकों को खुश करने के लिये उनका शोषण करते हैं। हमारा मानना है कि जो पत्रकार अपने लिये अपने बच्चों के लिये नहीं लड सकता वो कुछ भी हो सकता है पत्रकार नहीं हो सकता।
अरे हम हैं कुछ पागल जिन्होंने ठेका ले रखा है आप जैसे मन से अपाहिजों के लिये लडना का कमसे कम अरे चर्चा तो करो माहौल तो गर्म करो यदि स्वयं को बुद्धी जीवी समझते हो तो। हम जैसों के लिये ही बाल कवि बैरागी जी वे यह कविता लिखी है।
एक दिन सूर्य से इतना भर मैने कहा,
आपके साम्राज्य मे इतना अंधेरा क्यों रहा।
तमतमा कर वो दहाड़ा मै अकेला क्या करूं,
तुम निकम्मों के लिये मैं भला कब तक मरूं।
आकाश की आराधना के चक्करों मे मत पडो,
संग्राम छह घनघोर है कुछ मैं लूं कुछ तुम लडो।
अगर किसी को बुरा लगा हो तो मैंसमझूंगा कि मेरा मकसद। कुछ हद तक पूरा हो रहा है।
""शलभ भदौरिया """
No comments:
Post a Comment