Tuesday 17 June 2014

श्री रमेश कक्का का जनसंवेदना द्वारा सम्मान

श्री रमेश कक्का का जनसंवेदना द्वारा सम्मान
भोपाल 17 जून 2014। पत्रकार भवन, भोपाल के केयर टेकर श्री रमेश कक्का का आज जनसंवेदना संस्था ने शाल एवं श्रीफल से सम्मान कियां संस्था के अध्यक्ष श्री राधेश्याम अग्रवाल ने उन्हें एक स्मृति चिन्ह भी भेंट किया। ज्ञातव्य है कि 90 वर्षीय श्री रमेश कक्का 16 फरवरी 1969 से जब पत्रकार भवन का शिलान्यास हुआ तब से पत्रकार भवन एवं पत्रकारों की सेवा कर रहे हैं।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार सर्वत्री गोपाल जोशी, प्रवीण शुक्ला, संजय प्रकाश शर्मा, गणेश पांडे, नीरज निगम, आनंद तरंगी, उमाशरण श्रीवास्तव, रविकांत श्रीवास्तव, नीरज पाण्डे, मो. इकराम, विजय नेमा, एन.बी.राज, अनिल श्रीवास्तव, सुरेन्द्र शर्मा, धर्मेन्द्र सिंह ठाकुर, दिलीप भदौरिया, शिशुपाल सिंह तोमर आदि उपास्थित थे।
आर.एस.अग्रवाल

श्री रमेश कक्का का जनसंवेदना द्वारा सम्मान

श्री रमेश कक्का का जनसंवेदना द्वारा सम्मान
भोपाल 17 जून 2014। पत्रकार भवन, भोपाल के केयर टेकर श्री रमेश कक्का का आज जनसंवेदना संस्था ने शाल एवं श्रीफल से सम्मान कियां संस्था के अध्यक्ष श्री राधेश्याम अग्रवाल ने उन्हें एक स्मृति चिन्ह भी भेंट किया। ज्ञातव्य है कि 90 वर्षीय श्री रमेश कक्का 16 फरवरी 1969 से जब पत्रकार भवन का शिलान्यास हुआ तब से पत्रकार भवन एवं पत्रकारों की सेवा कर रहे हैं।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार सर्वत्री गोपाल जोशी, प्रवीण शुक्ला, संजय प्रकाश शर्मा, गणेश पांडे, नीरज निगम, आनंद तरंगी, उमाशरण श्रीवास्तव, रविकांत श्रीवास्तव, नीरज पाण्डे, मो. इकराम, विजय नेमा, एन.बी.राज, अनिल श्रीवास्तव, सुरेन्द्र शर्मा, धर्मेन्द्र सिंह ठाकुर, दिलीप भदौरिया, शिशुपाल सिंह तोमर आदि उपास्थित थे।
आर.एस.अग्रवाल

Monday 9 June 2014

दानी न बनें पत्रकार, मजीठिया न देने से भास्कर मालिकों को हर माह 25 करोड़ का फायदा होगा

दानी न बनें पत्रकार, मजीठिया न देने से भास्कर मालिकों को हर माह 25 करोड़ का फायदा होगा
सुना है भास्कर कर्मियों से यह लिखित लिया जा रहा है कि हमारा वेतन पर्याप्त है, हमें मजीठिया नहीं चाहिए। क्या बात है! पत्रकार इतने दानी हैं कि अपना वेतन नहीं ले रहे हैं। लेकिन वे एक बात भूल रहे हैं। जनाब आप वेतन नहीं लोगे तो आपके वेतन का करें क्या? भास्कर प्रबंधन को यह वेतन सरकार को दे देना चाहिए। क्योंकि जब कोई वेतन लेने से मना करता है तो सरकार का यह धर्म बनता है कि कर्मचारी से उसकी इच्छा जाने कि अपनी मेहनत की कमाई वह किसके हित में देना चाहता है। बस यहीं भास्कर प्रबंधन गलती कर रहा है। अब कर्मचारियों का धर्म बनता है कि वह यह लिखें कि चूंकि हमें इस वेतन की जरूरत नहीं इसलिए हम अपने बीबी बच्चों का हक अग्रवाल जी के बीबी बच्चों के नाम पर दान करते हैं।
शर्म नहीं आती है अख़बार प्रबंधन को जो कर्मचारियों का हक मारने के लिए तरह-तरह के जतन कर रहा है। और पत्रकार आपस में लड़ रहे हैं, आपने साथी कर्मचारियों की मलिकों से शिकायत कर रहे हैं। कुछ लोग मलिकों की चमचागिरी कर रहे है और मालिक उनके लिए कुत्तों की तरह दो रोटियां डाल देते हैं और वे सारा दिन पूंछ हिलाते रहते हैं। ऐसे मौके पर आपसी मतभेद भुलाकर पत्रकारों व संगठनों को एक होना पड़ेगा। संगठन की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इस संबंध नियम क्या हैं उनके बारे में मैं अपने पूर्व लेख 'नहीं होते ठेका पत्रकार मजीठिया देना प्रेस मलिकों की कानूनी मजबूरी' में चर्चा पहले ही कर चुका हूं कि कर्मचारियों से अपने हित में कुछ लिखा लेना गैर कानूनी है।
एम्प्लायमेंट स्टैंडर्स एक्ट 1946 की धारा 38 के तहत कर्मचारियों के साथ ग़ैरकानूनी शर्तें स्वतः समाप्त हो जाती है। और ग़ैरकानूनी उसे कहा जाता है जो कानून से बचने के लिए जतन किया जाए। ऐसा हो तो सट्टा लगाने वाले भी एक स्टांप में लिखा लें। और उनकी हर बात मान ली जाए। ऐसे लिखित दस्तावेज की तभी तक मान्यता है जब तक कर्मचारी मुंह ना खोले। खैर यह तो अपने -आप में गैर कानूनी है लेकिन जो कानूनी तौर पर लिखा पढ़ी होती है उसमें भी एक पक्ष मुकर जाए तो दूसरे पक्ष को सीधा धूप दिखने लगती है। इस शोषण का असर बहुत गंभीर होता है।
फिलहाल चार पेपरों की बात करें भास्कर, जागरण, नई दुनिया व पत्रिका की। जिनका टर्नओवर हजार करोड़ के आसपास है। और मजीठिया वेतन बोर्ड के अनुसार यहां के छोटे से छोटे कर्मचारी का वेतन 50 हजार से ऊपर होता है। भास्कर में 5000 हजार से ज्यादा पत्रकार है और मजीठिया नहीं देने के कारण उसे हर माह 25 करोड़ रुपए से अधिक का फायदा होगा। यही हाल चारों प्रेसों का है तो 100 करोड़ रुपए एक माह वेतन के रूप में बचत होती है। जिसका फायदा मालिकों को हो रहा है।
अब बात उत्तर भारत के प्रेसों की करें तो छोटे-बड़े प्रेस मिलाकर लगभग 1 हजार करोड़ रूपए कर्मचारियों के वेतन के रूप में डकारे जा रहे है। दक्षिण भारत को भी मिला लिया जाए तो यह आंकड़ा 2 हजार करोड़ से ज्यादा हो जाता है। यह पैसा यदि पत्रकारों के पास आता तो एक लाख से ज्यादा पत्रकारों की दशा सुधरने के साथ ही 10 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा होता। क्योंकि यह पैसा मार्केट में जाता फिर दूसरे कामों में निवेश होता।
क्या होगा मजीठिया लागू होने पर?
मजीठिया लागू होने पर मालिकों को नुकसान नहीं अपितु थोड़ा कम फायदा होगा। दरअसल सरकार का मानना है कि पत्रकार खुद कमाएं और खाए। पत्रकारिता लाभ का धंधा ना बने। यह तभी संभव होगा जब हर कर्मचारी को शेयर धारक बनाया जाए। नहीं तो मालिक हमेशा कर्मचारियों का शोषण करता रहेगा। बोनस की भांति कर्मचारियों को साल में निर्धारित शेयर दिए जाए और एक दिन ऐसा आए जब कर्मचारी और मालिकों का शेयर बराबर हो। यह पद्धित प्रेस ही नहीं अपिंतु हर कंपनी व फैक्ट्री में लागू होनी चाहिए। जिससे लोगों के बीच आर्थिक असमानता दूर हो।
पत्रकारों को यह बात उठानी चाहिए। शायद यह प्रथा डेनमार्क में प्रचलित है। हां, मजीठिया लागू होने से प्रेस में कर्मचारियों पर बोझ बढ़ जाएगा, योग्य कर्मचारी ही पत्रकार बनेंगे। चार की जगह एक पत्रकार से प्रेस काम लेगा। पत्र की गुणवक्ता में सुधार होगा। और छोटे प्रेस व पत्रकारिता के नाम व गोरखधंधा बंद होगा। फिर कोई भी खुद को पत्रकार कहने में सौ बार सोचेगा। क्योंकि मजीठिया लागू होने के बाद पत्रकार पत्रकार के रूप में दिखेंगे।
मैं फिर इस बात पर जोर देता हूं कि इस पूरे मामले में पत्रकार संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण है जिस तरह मजिठिया वेज बोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट में संगठनों ने अपनी जोरदार बात रखी उसी तरह पत्रकारों का उनका हक दिलाने के लिए सक्रिय होना होगा। संगठनों के हस्तक्षेप से काम जल्द होगा। पत्रकारों को भी फिलहाल आपसी मतभेद भुलाकर एक होना होगा। अपने झगड़े बाद में देख लेंगे। मेरे गांव में एक नियम बना है कि चाहे पड़ोसी या गांव का कोई सदस्य हमारा कट्टर दुश्मन हो लेकिन यदि उसके घर आग लगी है, डाका पड़ा है तो तत्काल मदद करनी पड़ेगी चाहे वह शारीरिक हो या आर्थिक। उसके बाद फिर दुश्मनी निभाओ, कोई बात नहीं। लेकिन ऐसे मौके पर यदि नहीं गए तो पूरा गांव आपका दुश्मन हो जाएगा।

Sunday 1 June 2014

majethai

जीठिया वेतन बोर्ड के लिए लड़ रहे साथियों के लिए यह लेबर कोर्ट के लिए परिवाद पत्र प्रस्तुत कर रहा हूं। इसमें 5 रूपए का कोर्ट फीस टिकट लगाकर लेबर कोर्ट में दाखिल किया जा सकता है। साथ ही इसे रजिस्ट्री डाक द्वारा भी भेजें। ध्यान रहे जितने वादी रहेंगे उतने कोर्ट फीस के टिकट और रजिस्ट्री डाक का खर्च देना पड़ेगा। अर्थात् वादियों की संख्या के अनुसार परिवाद पत्र की प्रतियां रहेगी जैसे तीन वादी हैं तो तीन प्रति में यह परिवाद पत्र कोर्ट फीस सहित तैयार करना पड़ेगा। वैसे सच्चाई यह है कि लेबर कोर्ट में संभवतः आज तक जर्नलिस्ट एक्ट के तहत परिवाद ही नहीं लगा इसलिए कोर्ट फीस भी वकीलों व कोर्ट स्टाफ को नहीं पता।

हां, परिवाद पत्र के साथ उक्त संस्था का कर्मचारी होने का प्रमाण भी प्रस्तुत करें जैसे- बैंक द्वारा भुगतान की छायाप्रति, सैलरी स्लिप, उपस्थिति पंजीयन, गेट पास आदि में कुछ भी। जिससे नियोक्ता यह ना कह सकें कि उक्त व्यक्ति हमारे संस्था में काम नहीं करता। यदि कर्मचारी के पास यह दस्तावेज नहीं भी है तो परेशान होने की जरूरत नहीं। क्योंकि कोर्ट नियोक्ता से पूछता है कि आप सिद्ध करों कि यह आपका कर्मचारी नहीं है। यदि मालिक या नियोक्ता भर्ती संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाता तो उस पर दंडात्मक कार्यवाही होती है क्योंकि उपस्थिति पंजीयन रखना, नियुक्ती पत्र, अवकाश कार्ड, वेतन कार्ड देना संस्थान की कानूनी जिम्मेदारी है।

मजीठिया वेतन बोर्ड में हाउस रेंट, मेडिकल भत्ता, यात्रा भत्ता, रात्रिकालीन भत्ता आदि सभी जुड़े है सभी की गणना कराएं। याद रखें लेबर कोर्ट पीएफ संबंधी मामलों की सुनवाई नहीं करता इसलिए इसका क्लेम पीएफ कार्यालय व उसके कोर्ट में भेजे। हां इसकी प्रति लेबर कोर्ट में दिखा सकते है।

बोनस प्रेस कर्मचारियों को कंपनी के लाभ के अनुसार देने का प्रावधान है लेकिन कंपनी का लाभ कुछ ही कर्मचारियों को पता होता है। इसलिए बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की धारा 10 के अनुसार कुल वेतन का न्यूनतम 8.33 प्रतिशत बोनस भुगतान करना चाहिए। जो एक माह के वेतन के बराबर होता है। धारा 31 के तहत साल भर के कुल वेतन का 20 प्रतिशत का बोनस दिया जाता है।

बहस में अधिकतर वकील यह पूछते है कि आप मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति की मांग किस नियम या धारा के तहत कर रहे है। यह अवैधानिक है। वैसे कई केसों में मैंने अध्ययन किया और आवेदक केस जीत जाता है लेकिन आर्थिक व मानसिक क्षतिपूर्ति का कोई नियम नहीं है। सुखाधिकार अधिनियम 1882 की धारा 33 के तहत उक्त क्षतिपूर्ति का उल्लेख है लेकिन व जमीन विवाद से संबंधित है। मजदूरों व श्रमिकों के लिए कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923 की धारा 10 के तहत मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है।


परिवाद पत्र का प्रारूप:


माननीय श्रम न्यायालय.........................( )

प्रकरण संख्या:................................/2014


नाम ....................................................
पता......................................................    आवेदक/ कर्मचारी


बनाम


नाम .................................................
पता...................................................

नाम .................................................    अनावेदक/नियोजक
पता...................................................

नाम .................................................
पता...................................................

श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्त) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1955 (1955 का 45) की धारा 9 और 13ग के तहत गठित मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के तहत वेतन भुगतान व एरियर का भुगतान कराने व अनावेदक/नियोक्ता पर वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15(3) के तहत दंड रोपित करने बावत्

1.    निवेदन है कि प्रार्थी एक श्रमजीवी पत्रकार है. जीवन यापन का एक मात्र जरिया पत्रकारिता का पेशा है। मैं ..............(इस संस्था)..........में ...............(इस पद)............पर दिनांक .....................से कार्यरत हूं।

2.    मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाएं 11 नवंबर 2011 से स्वीकार कर ली गई है। तथा उक्त संबंध में दायर रिट याचिका (सिविल) 246 /2011 पर 7 फरवरी को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सभी प्रेस मालिकों को अप्रैल 2014 से मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के अनुसार वेतन देने के आदेश दिए थे। तथा एरियर का भुगतान 7 फरवरी 2015 तक चार किस्तों में करने के आदेश दिए थे लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उपरांत मुझे मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार ना वेतन मिल रहा है और ना ही एरियर देने के लिए कोई पहल की जा रही है।

3.    नियमानुसार मई तक एरियर की पहली किस्त मिल जानी चाहिए लेकिन अभी तक नहीं दी गई जिससे साफ होता है मुद्रक प्रकाशक और नियोक्ता को कानून का ना तो कोई भय है और ना ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई मान है।

4.    मजीठिया वेतन बोर्ड के अनुसार मेरा प्रति माह का वेतन ............. है। कटौती के अन्य भत्ते व एलांउस इस प्रकार है।

5.    चूंकि जर्नलिस्ट एक्ट 1955 की धारा 6 के तहत एक माह में 144 दिन व धारा 7 के तहत दिन की पारी में 6 घंटे और रात्रि की पारी में साढ़े 5 घंटे ही काम करने की अनुमति है। अर्थात् सप्ताह में 36 घंटे काम करने की अनुमति है लेकिन नियोक्ता द्वारा मुझसे 12 घंटे काम लिया गया।

6.    उक्त अधिनियम के अनुसार यदि तय समय से ज्यादा काम लिया जाता है तो कर्मचारी व मालिक की सहमति पर अन्य दिन अवकाष देना चाहिए। लेकिन संस्थान ने नहीं दिया। इसलिए अतिरिक्त समय काम करने के एवज में वेतन का डेढ़ गुणा वेतन पाने का अधिकार है जो .....................इतना हुआ।

7. जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 7 के अनुसार 11 माह में एक माह की उपार्जित छुट्टी दी जाएगी। किन्तु 90 उपार्जित छुट्टियां एकत्र हो जाने के बाद और छुट्टियां उपार्जित नहीं मानी जायेंगी। सामान्य छुट्टियों, आकस्मिक छुट्टियों और टीका छुट्टी की अवधि को काम पर व्यतीत अवधि माना जाएगा। संस्थान द्वारा कभी उक्त नियम का पालन किया गया और ना ही छुट्टी दी गई।
 जिसका वेतन .......................इतना हुआ।

8.    वर्तमान में मुझे ..............वेतन मिल रहा है। अंतः 11 नवंबर 2011 से नवंबर 2012 तक मेरा कुल वेतन .......................................
.......................................
एक साल का बोनस- ......... अर्थात् कुल वेतन का 20 प्रतिशत अर्थात् साल भर का कुल वेतन (गुणा) साल भर का वेतन

9.    11 नवंबर 2012 से नवंबर 2013 तक मेरा कुल वेतन

साल का बोनस- ......... अर्थात् कुल वेतन का 20 प्रतिशत अर्थात् साल भर का कुल वेतन (गुणा) साल भर का वेतन

वेतन भुगतान में देरी के कारण इसका प्रत्यक्ष लाभ संस्थान मालिक को गया और मेरे हक का वेतन अन्य कार्याें में उपयोग किया। इसलिए उक्त राषि की ब्याज राशि 12 प्रतिशित की दर से इतना हुआ।

यह राशि समय पर नहीं मिलने से मुझे जो मानसिक पीड़ा व आत्मग्लानि हुई उसकी मानसिक क्षतिपूर्ति राशि ................................है।

वेतन और बोनस की राशि समय पर नहीं मिलने के कारण मुझे जो आर्थिक क्षति हुई मेरी प्रगति रूकी, बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और निवेश में जो हानि हुई उसकी आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि ..............इतनी हुई।

पीएफ राशि -
(नोट- पीएफ राशि का क्लेम पीएफ कार्यालय भेजा जा चुका है।)

इस तरह कुल राशि ................................................

10.    चूंकि वेतन देने में नियोक्ता द्वारा अनावश्य बिलंव किया गया और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया गया। जो संस्थान की गैर जिम्मेदाराना प्रवृति को दर्शाता है इसलिए वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15 की उपधारा 3 के तहत संस्थान पर कुल वेतन राशि का दस गुना जुर्माना लगाना उचित होगा। जिससे नियोक्ता दोबारा कानून की अवहेलना करने का साहस ना कर सकें।

दंड सहित कुल राशि ..........................कुल राषि (गुणित) 10

अतः माननीय न्यायालय से निवेदन है कि मुझे मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार वेतन और एरियर भुगतान कराने की कृपा करें।       


                                                             सत्यापन
मैं शपथ पूर्वक कहता हूं कि मेरे द्वारा बिंदू 1 से 10 तक दी गई जानकारी मेरी जानकारी के अनुसार सत्य है।


प्रार्थी/ आवेदक
दिनांकः



अंत में पत्रकार साथियों से व कानूनी जानकारों से कहना चाहूंगा कि मैंने अपनी जानकारी के अनुसार जो जानकारी आपके सामने रखी है उसमें यदि गलती हो, कमी हो तो उचित सुझाव दें। हां, कई बार गैर पत्रकार अपने बारे में कानूनी सलाह पूछते है तो बताना चाहूंगा कि उन्हें भी उतना ही अधिकार है जितना एक पत्रकार को मजीठिया वेतन बोर्ड पत्रकार व गैर पत्रकार दोनों के लिए है और दोनों के लिए समान कानून व धारा है। मित्रों यदि कोई संपादक अपनी संपदकगिरी ज्यादा दिखा रहा है तो उसे भी प्रतिवादी बना सकते है।

जब किसी कर्मचारी को निकाल दिया जाता है तो उसे छंटनी मुआवजा पाने का हक है जो एक महीने वेतन गुणित 6 अर्थात् 6 माह का वेतन और जितने साल काम किया है। उतने का गुणा जैसे कोई तीन साल काम किया और उसका अंतिम वेतन 6000 है तो 6’ 6000’ 3 बराबर 108000 यह राशि छंटनी मुआवजा हुई और यदि ग्रेच्यूटी राशि 6000 (वेतन) ’ 15 (दिन)’ 3 (नौकरी अवधि) / 26 (एक माह में 26 दिन माने जाते है छुट्टियां काटकर) अर्थात् कुल 10384.61 रूपए तीन साल की ग्रेच्युटी मिली। वैसे सामान्य मजदूरों के लिए 5 साल बाद ग्रेच्युटी का अधिकार है लेकिन पत्रकारों के लिए तीन साल बाद ही अधिकार बनता है।

240 दिन व साल में एक माह अवकाश लिए बिना 11 माह तक नौकरी करने वाला कर्मचारी नियमित कर्मचारी माना जाता है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25(एफ) के तहत इसके बाद किसी कर्मचारी को यह कहकर नहीं निकाला जा सकता है कि आपका काम संतोषजनक नहीं है यदि निकाला जाता है तो लेबर कोर्ट में चुनौती दी जाती है जहां कोर्ट पुनः नौकरी पर रखने का आदेश देने के साथ ही निकाले गए अवधि का वेतन देने का आदेश देता है।

नोट- चूंकि सभी जानकारियां व परिवाद पत्र बनाने में सवधानियां बरती गई है फिर भी कानून जानकारों से सलाह ले ले।

महेश्वरी प्रसाद मिश्र

majetha

जीठिया वेतन बोर्ड के लिए लड़ रहे साथियों के लिए यह लेबर कोर्ट के लिए परिवाद पत्र प्रस्तुत कर रहा हूं। इसमें 5 रूपए का कोर्ट फीस टिकट लगाकर लेबर कोर्ट में दाखिल किया जा सकता है। साथ ही इसे रजिस्ट्री डाक द्वारा भी भेजें। ध्यान रहे जितने वादी रहेंगे उतने कोर्ट फीस के टिकट और रजिस्ट्री डाक का खर्च देना पड़ेगा। अर्थात् वादियों की संख्या के अनुसार परिवाद पत्र की प्रतियां रहेगी जैसे तीन वादी हैं तो तीन प्रति में यह परिवाद पत्र कोर्ट फीस सहित तैयार करना पड़ेगा। वैसे सच्चाई यह है कि लेबर कोर्ट में संभवतः आज तक जर्नलिस्ट एक्ट के तहत परिवाद ही नहीं लगा इसलिए कोर्ट फीस भी वकीलों व कोर्ट स्टाफ को नहीं पता।

हां, परिवाद पत्र के साथ उक्त संस्था का कर्मचारी होने का प्रमाण भी प्रस्तुत करें जैसे- बैंक द्वारा भुगतान की छायाप्रति, सैलरी स्लिप, उपस्थिति पंजीयन, गेट पास आदि में कुछ भी। जिससे नियोक्ता यह ना कह सकें कि उक्त व्यक्ति हमारे संस्था में काम नहीं करता। यदि कर्मचारी के पास यह दस्तावेज नहीं भी है तो परेशान होने की जरूरत नहीं। क्योंकि कोर्ट नियोक्ता से पूछता है कि आप सिद्ध करों कि यह आपका कर्मचारी नहीं है। यदि मालिक या नियोक्ता भर्ती संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाता तो उस पर दंडात्मक कार्यवाही होती है क्योंकि उपस्थिति पंजीयन रखना, नियुक्ती पत्र, अवकाश कार्ड, वेतन कार्ड देना संस्थान की कानूनी जिम्मेदारी है।

मजीठिया वेतन बोर्ड में हाउस रेंट, मेडिकल भत्ता, यात्रा भत्ता, रात्रिकालीन भत्ता आदि सभी जुड़े है सभी की गणना कराएं। याद रखें लेबर कोर्ट पीएफ संबंधी मामलों की सुनवाई नहीं करता इसलिए इसका क्लेम पीएफ कार्यालय व उसके कोर्ट में भेजे। हां इसकी प्रति लेबर कोर्ट में दिखा सकते है।

बोनस प्रेस कर्मचारियों को कंपनी के लाभ के अनुसार देने का प्रावधान है लेकिन कंपनी का लाभ कुछ ही कर्मचारियों को पता होता है। इसलिए बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की धारा 10 के अनुसार कुल वेतन का न्यूनतम 8.33 प्रतिशत बोनस भुगतान करना चाहिए। जो एक माह के वेतन के बराबर होता है। धारा 31 के तहत साल भर के कुल वेतन का 20 प्रतिशत का बोनस दिया जाता है।

बहस में अधिकतर वकील यह पूछते है कि आप मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति की मांग किस नियम या धारा के तहत कर रहे है। यह अवैधानिक है। वैसे कई केसों में मैंने अध्ययन किया और आवेदक केस जीत जाता है लेकिन आर्थिक व मानसिक क्षतिपूर्ति का कोई नियम नहीं है। सुखाधिकार अधिनियम 1882 की धारा 33 के तहत उक्त क्षतिपूर्ति का उल्लेख है लेकिन व जमीन विवाद से संबंधित है। मजदूरों व श्रमिकों के लिए कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923 की धारा 10 के तहत मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है।


परिवाद पत्र का प्रारूप:


माननीय श्रम न्यायालय.........................( )

प्रकरण संख्या:................................/2014


नाम ....................................................
पता......................................................    आवेदक/ कर्मचारी


बनाम


नाम .................................................
पता...................................................

नाम .................................................    अनावेदक/नियोजक
पता...................................................

नाम .................................................
पता...................................................

श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्त) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1955 (1955 का 45) की धारा 9 और 13ग के तहत गठित मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के तहत वेतन भुगतान व एरियर का भुगतान कराने व अनावेदक/नियोक्ता पर वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15(3) के तहत दंड रोपित करने बावत्

1.    निवेदन है कि प्रार्थी एक श्रमजीवी पत्रकार है. जीवन यापन का एक मात्र जरिया पत्रकारिता का पेशा है। मैं ..............(इस संस्था)..........में ...............(इस पद)............पर दिनांक .....................से कार्यरत हूं।

2.    मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाएं 11 नवंबर 2011 से स्वीकार कर ली गई है। तथा उक्त संबंध में दायर रिट याचिका (सिविल) 246 /2011 पर 7 फरवरी को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सभी प्रेस मालिकों को अप्रैल 2014 से मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के अनुसार वेतन देने के आदेश दिए थे। तथा एरियर का भुगतान 7 फरवरी 2015 तक चार किस्तों में करने के आदेश दिए थे लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उपरांत मुझे मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार ना वेतन मिल रहा है और ना ही एरियर देने के लिए कोई पहल की जा रही है।

3.    नियमानुसार मई तक एरियर की पहली किस्त मिल जानी चाहिए लेकिन अभी तक नहीं दी गई जिससे साफ होता है मुद्रक प्रकाशक और नियोक्ता को कानून का ना तो कोई भय है और ना ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई मान है।

4.    मजीठिया वेतन बोर्ड के अनुसार मेरा प्रति माह का वेतन ............. है। कटौती के अन्य भत्ते व एलांउस इस प्रकार है।

5.    चूंकि जर्नलिस्ट एक्ट 1955 की धारा 6 के तहत एक माह में 144 दिन व धारा 7 के तहत दिन की पारी में 6 घंटे और रात्रि की पारी में साढ़े 5 घंटे ही काम करने की अनुमति है। अर्थात् सप्ताह में 36 घंटे काम करने की अनुमति है लेकिन नियोक्ता द्वारा मुझसे 12 घंटे काम लिया गया।

6.    उक्त अधिनियम के अनुसार यदि तय समय से ज्यादा काम लिया जाता है तो कर्मचारी व मालिक की सहमति पर अन्य दिन अवकाष देना चाहिए। लेकिन संस्थान ने नहीं दिया। इसलिए अतिरिक्त समय काम करने के एवज में वेतन का डेढ़ गुणा वेतन पाने का अधिकार है जो .....................इतना हुआ।

7. जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 7 के अनुसार 11 माह में एक माह की उपार्जित छुट्टी दी जाएगी। किन्तु 90 उपार्जित छुट्टियां एकत्र हो जाने के बाद और छुट्टियां उपार्जित नहीं मानी जायेंगी। सामान्य छुट्टियों, आकस्मिक छुट्टियों और टीका छुट्टी की अवधि को काम पर व्यतीत अवधि माना जाएगा। संस्थान द्वारा कभी उक्त नियम का पालन किया गया और ना ही छुट्टी दी गई।
 जिसका वेतन .......................इतना हुआ।

8.    वर्तमान में मुझे ..............वेतन मिल रहा है। अंतः 11 नवंबर 2011 से नवंबर 2012 तक मेरा कुल वेतन .......................................
.......................................
एक साल का बोनस- ......... अर्थात् कुल वेतन का 20 प्रतिशत अर्थात् साल भर का कुल वेतन (गुणा) साल भर का वेतन

9.    11 नवंबर 2012 से नवंबर 2013 तक मेरा कुल वेतन

साल का बोनस- ......... अर्थात् कुल वेतन का 20 प्रतिशत अर्थात् साल भर का कुल वेतन (गुणा) साल भर का वेतन

वेतन भुगतान में देरी के कारण इसका प्रत्यक्ष लाभ संस्थान मालिक को गया और मेरे हक का वेतन अन्य कार्याें में उपयोग किया। इसलिए उक्त राषि की ब्याज राशि 12 प्रतिशित की दर से इतना हुआ।

यह राशि समय पर नहीं मिलने से मुझे जो मानसिक पीड़ा व आत्मग्लानि हुई उसकी मानसिक क्षतिपूर्ति राशि ................................है।

वेतन और बोनस की राशि समय पर नहीं मिलने के कारण मुझे जो आर्थिक क्षति हुई मेरी प्रगति रूकी, बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और निवेश में जो हानि हुई उसकी आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि ..............इतनी हुई।

पीएफ राशि -
(नोट- पीएफ राशि का क्लेम पीएफ कार्यालय भेजा जा चुका है।)

इस तरह कुल राशि ................................................

10.    चूंकि वेतन देने में नियोक्ता द्वारा अनावश्य बिलंव किया गया और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया गया। जो संस्थान की गैर जिम्मेदाराना प्रवृति को दर्शाता है इसलिए वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15 की उपधारा 3 के तहत संस्थान पर कुल वेतन राशि का दस गुना जुर्माना लगाना उचित होगा। जिससे नियोक्ता दोबारा कानून की अवहेलना करने का साहस ना कर सकें।

दंड सहित कुल राशि ..........................कुल राषि (गुणित) 10

अतः माननीय न्यायालय से निवेदन है कि मुझे मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार वेतन और एरियर भुगतान कराने की कृपा करें।       


                                                             सत्यापन
मैं शपथ पूर्वक कहता हूं कि मेरे द्वारा बिंदू 1 से 10 तक दी गई जानकारी मेरी जानकारी के अनुसार सत्य है।


प्रार्थी/ आवेदक
दिनांकः



अंत में पत्रकार साथियों से व कानूनी जानकारों से कहना चाहूंगा कि मैंने अपनी जानकारी के अनुसार जो जानकारी आपके सामने रखी है उसमें यदि गलती हो, कमी हो तो उचित सुझाव दें। हां, कई बार गैर पत्रकार अपने बारे में कानूनी सलाह पूछते है तो बताना चाहूंगा कि उन्हें भी उतना ही अधिकार है जितना एक पत्रकार को मजीठिया वेतन बोर्ड पत्रकार व गैर पत्रकार दोनों के लिए है और दोनों के लिए समान कानून व धारा है। मित्रों यदि कोई संपादक अपनी संपदकगिरी ज्यादा दिखा रहा है तो उसे भी प्रतिवादी बना सकते है।

जब किसी कर्मचारी को निकाल दिया जाता है तो उसे छंटनी मुआवजा पाने का हक है जो एक महीने वेतन गुणित 6 अर्थात् 6 माह का वेतन और जितने साल काम किया है। उतने का गुणा जैसे कोई तीन साल काम किया और उसका अंतिम वेतन 6000 है तो 6’ 6000’ 3 बराबर 108000 यह राशि छंटनी मुआवजा हुई और यदि ग्रेच्यूटी राशि 6000 (वेतन) ’ 15 (दिन)’ 3 (नौकरी अवधि) / 26 (एक माह में 26 दिन माने जाते है छुट्टियां काटकर) अर्थात् कुल 10384.61 रूपए तीन साल की ग्रेच्युटी मिली। वैसे सामान्य मजदूरों के लिए 5 साल बाद ग्रेच्युटी का अधिकार है लेकिन पत्रकारों के लिए तीन साल बाद ही अधिकार बनता है।

240 दिन व साल में एक माह अवकाश लिए बिना 11 माह तक नौकरी करने वाला कर्मचारी नियमित कर्मचारी माना जाता है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25(एफ) के तहत इसके बाद किसी कर्मचारी को यह कहकर नहीं निकाला जा सकता है कि आपका काम संतोषजनक नहीं है यदि निकाला जाता है तो लेबर कोर्ट में चुनौती दी जाती है जहां कोर्ट पुनः नौकरी पर रखने का आदेश देने के साथ ही निकाले गए अवधि का वेतन देने का आदेश देता है।

नोट- चूंकि सभी जानकारियां व परिवाद पत्र बनाने में सवधानियां बरती गई है फिर भी कानून जानकारों से सलाह ले ले।

महेश्वरी प्रसाद मिश्र

राधे माहन सिन्हा पत्रकार के निधन पर भावभीनी श्रद्धाजंली अर्पित की गई

राधे माहन सिन्हा पत्रकार के निधन पर भावभीनी श्रद्धाजंली अर्पित की गई

इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट की भोपाल इकाई वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल ने शनिवार को छोला विश्राम घाट पर एक शोक

सभा राजेंद्र कश्यप  की अध्यक्षता में आयोजित की गई जिसमें वरिष्ठ पत्रकार राधेमोहन सिन्हा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया गया एवं

भावभीनी श्रद्धाजंली अर्पित की गई।

जनसम्पर्क विभाग की समाचार शाखा से सेवानिवृत्त हाने के बाद भोपाल से दैनिक आलोक मंे संपादक कमाल खान कमाल के साथ सहयोगी

संपादक रहे और सीहोर से प्रकाशित दैनिक क्षितिज किरण में कार्यरत रहे। भोपाल से प्रकाशित छात्रांे ओर युवकों के लिये प्रकाशित भोपाल रिपार्टर

साप्ताहिक का 40 वर्षों तक प्रकाशन किया जिसमें भोपाल विश्व विद्यालय के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कल 31 मई 2014 को सायं 6 बजे

उनके पुत्र श्री आलोक श्रीवास्तव  ने उनको मुखाग्नि दी। इस अवसर पर जनसंपर्क एवं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों सहित पत्रकार,साहित्यकार व

भारी संख्या मंे कायस्थ समाज एवं भोपाल के वरिष्ठ नागरिक उपस्थित थे।