Thursday 28 May 2015

भोपाल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव को सौंपा ज्ञापन

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From: salman khan <salmanafkar101@gmail.com>
Date: 2015-05-27 2:46 GMT-07:00
Subject: Fwd: Meetin to C.S. Antoni Disa
To: Deepak sharma <prativad@gmail.com>


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From: "rajendra mehta" <mehta.rajendra26@gmail.com>
Date: May 27, 2015 3:07 PM
Subject: Meetin to C.S. Antoni Disa
To: "salman khan" <salmanafkar101@gmail.com>
Cc:

भोपाल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव को सौंपा ज्ञापन
इण्डियन फेडरेशन आॅफ वर्किंग जर्नलिस्ट(IFWJ)नई दिल्ली से संबद्ध भोपाल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल शहर के एक प्रतिनिधि मण्डल ने बुधवार 27 मई को प्रदेश के मुख्य सचिव अंटोनी जे.सी.डिसा से वल्लभ भवन मंत्रालय में भेंट कर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा और मजीठिया आयोग की सिफारिशों को मीडिया संस्थानों में लागू कराने के लिए गत माह 28 अप्रैल 2015 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर राज्य में एक विशेष श्रम निरीक्षक की नियुक्ति आदेश दिनाँक से एक माह के भीतर करने संबंधी राज्य सरकारों को दिए गए निर्देश के संबंध में मुख्य सचिव का ध्यान आकर्षित कराया। इस पर मुख्य सचिव श्री डिसा ने अनभिज्ञता जाहिर की कि एक माह पहले हुए इस आदेश की जानकारी उन्हें अब तक नहीं मिली। उन्होंने प्रतिनिधि मण्डल को भरोसा दिलाया कि वह जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालनार्थ विशेष श्रम निरीक्षक की नियुक्ति हेतु कार्यवाही करेंगे। साथ ही उन्होंने उसी समय अपने अधीनस्थ अधिकारियों को बुलाकर इस संबंध में अग्रिम कार्यवाही के लिए निर्देशित भी किया। ज्ञात हो कि यूनियन का एक प्रतिनिधि मण्डल एक पखवाड़ा पहले इस संबंध में प्रदेश के श्रम मंत्री श्री अंतर सिंह आर्य को भी ज्ञापन सौंप चुका है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गत 28 अप्रैल को दिए आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस आदेश के पालनार्थ सभी राज्य सरकारें अपने राज्य में एक विशेष श्रम निरीक्षक की नियुक्ति कर यह सर्वें कराएं कि उनके राज्य में किन-किन मीडिया संस्थानों द्वारा मजीठिया वेतनमान लागू किया है अथवा नहीं। और इसकी विस्तृत रिपोर्ट तीन माह में माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाए। प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व यूनियन के अध्यक्ष सलमान खान ने किया। इस मौके पर उनके साथ विभिन्न समाचार-पत्रों के पत्रकार साथी उपस्थित रहे।

Friday 22 May 2015

मजीठिया वेतन आयोग की फाइनल रिपोर्ट आ गई लेकिन मीडियाकर्मियों को बाबाजी का ठुल्लू ही मिल पाया है.

मजीठिया वेतन आयोग की फाइनल रिपोर्ट आ गई लेकिन मीडियाकर्मियों को बाबाजी का ठुल्लू ही मिल पाया है. मालिकों ने इतने प्रकार की साजिशें, छल, धोखा, उछाड़ पछाड़ की है कि मीडियाकर्मियों को लाभ शून्य के बराबर मिला. कई मीडिया हाउसों ने हर यूनिट को कंपनी के रूप में तब्दील कर दिया तो कुछ ने अपने कर्मियों से लिखा लिया कि उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ नहीं चाहिए. सारा मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट ने गेंद फिर से प्रदेश सरकारों और लेबर विभाग पर डाल दिया है. कुल मिलाकर मजीठिया वेज बोर्ड एक ऐसी परिघटना है जिसके बहाने पूरे देश में लोकतंत्र के चरम पतन को देखा जा सकता है.

विभिन्‍न अखबारों में काम रहे रहे पत्रकारों व गैर पत्रकारों के लिए गठित राष्‍ट्रीय वेतन आयोग के चेयरमैन न्‍यायमूर्ति जीआर मजीठिया और बोर्ड के सदस्‍यों ने अपनी अंतिम रिपोर्ट श्रम व रोजगार मंत्रालय के सचिव पीसी चतुर्वेदी को सौंप दी है. रिपोर्ट सौंपने के बाद न्‍यायमूर्ति मजीठिया ने कहा कि रिपोर्ट तैयार करते समय कर्मचारियों के हितों व उम्‍मीदों को ध्‍यान में रखने के साथ ही नियोक्‍ताओं की भुगतान करने की क्षमता को ध्‍यान में रखा गया है. रिपोर्ट में सरकार को कुछ सुझाव भी दिए गए हैं जिसमें सेवानिवृत्ति के बाद होने वाले लाभ, प्रमोशन पॉलिसी और RNI के डाटाबेस में सुधार करने की जरूरत आदि शामिल हैं.
रिपोर्ट में कुल राजस्‍व के आधार पर समाचार पत्र प्रतिष्‍ठानों को आठ श्रेणियों में और न्‍यूज एजेंसियों को चार श्रेणियों में बांटा गया है. प्रत्‍येक श्रेणी के प्रतिष्‍ठान में नौकरी को छह श्रेणियों में वर्गीकृत कर उसके अनुसार पे स्‍केल की सिफारिशें की गई हैं. नए पे स्‍केल में पुराने मूल वेतन और जून 2010 तक महंगाई भत्‍ते को मिलाकर 30 प्रतिशत अतिरिक्‍त की अंतरिम राहत दी गई है. नया वेतन पहले शीर्ष के चार प्रतिष्‍ठानों में कर्मचारियों के वेतन में 35 प्रतिशत की दर से और अन्‍य चार श्रेणी के प्रतिष्‍ठानों में 20 प्रतिशत की दर से वेतन को शामिल कर देना होगा. नए वेतनमान की गणना एक जुलाई 2010 से की जाएगी.

निचली श्रेणी के प्रतिष्‍ठान में सबसे निचले श्रेणी के कर्मचारी के लिए मासिक परिलब्धियां 9000 मूल वेतन के आधार पर तैयार की जाएंगी. बड़े प्रतिष्‍ठानों जिनका ग्रॉस रेवेन्‍यू एक करोड़ रुपये से अधिक है, उनमें गैर पत्रकारों के लिए संशोधित मूल वेतन 9000 से 17000 रुपये और पत्रकारों के लिए 13000 रुपये से 25000 रुपये होगा. इस रिपोर्ट में पुरुषों को पितृत्‍व अवकाश, सेवानिवृत्ति की उम्र 65 साल करने और पेंशन योजनाओं को शामिल करने की संस्‍तुति भी की गई है.

वेतन आयोग ने विभिन्‍न श्रेणी के प्रतिष्‍ठानों के लिए अलग-अलग रात्रि भत्‍ता , हार्डशिप अलाउंस, आने-जाने का भत्‍ता , हाउस रेंट अलाउंस आदि की संस्‍तुति भी की है. इसके अलावा आयोग की सिफारिशें न माने जानने और झूठ आदि शिकायतों के निस्‍तारण के लिए एक ट्रिब्‍यूनल के रूप में एक स्‍थायी व्‍यवस्‍था बनाने की सिफारिश भी की गई है. इसके अलावा यह भी कहा गया है कि ठेके पर रखे गए कर्मचारियों को भी उस काम के लिए वही सैलरी देनी होगी जो एक स्‍थायी कर्मचारी को उसी काम के लिए दी जाती है. रोजगार व श्रम मंत्रालय ने 24 मई 2007 और तीन जुलाई 2007 को अधिसूचना जारी कर कामकाजी पत्रकारों और अखबार में कार्यरत गैर पत्रकारों के लिए वेतन बोर्ड का गठन किया था. इसकी अध्‍यक्षता केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज डॉ. नारायण कुरुप को सौंपी गई थी. जस्टिस नारायण कुरुप के इस्‍तीफे के बाद सरकार ने जीआर मजीठिया को वेतन बोर्ड का अध्‍यक्ष नियुक्‍त किया था.

Wednesday 20 May 2015

बिना डरे आगे आयें पत्रकार, सरकार दिलाएगी उनका हक: श्रम मंत्री श्री आर्य

बिना डरे आगे आयें पत्रकार, सरकार दिलाएगी उनका हक: श्रम मंत्री श्री आर्य
भोपाल 20 मई 2015। मीडिया संस्थानों में सेवारत पत्रकार एवं गैर पत्रकार बिना किसी डर के अपने अधिकारों के लिए आगे आयें, सरकार उनके साथ है तथा उन्हें उनका पूरा हक दिलाने के लिए कृतसंकल्पित है। यह बात आज यहां प्रदेश के श्रम मंत्री श्री अंतर सिंह आर्य ने अपने निवास पर भोपाल वर्किंग जर्नििलस्ट यूनियन भोपाल के तत्वावधान में उनसे भेंट करने पहुँचे पत्रकारों के एक प्रतिनिधि मंडल से कही। यह प्रतिनिधि मंडल सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28/04/2015 को पत्रकारों के लिए मजीठिया आयोग की अनुशंसा लागू कराने के लिए राज्य सरकारों को दिए गए आदेश के पालनार्थ श्रम मंत्री को ज्ञापन सौंपने गया था। यूनियन के अध्यक्ष सलमान खान के नेतृत्व में गए इस प्रतिनिधि मण्डल से लगभग आधा घंटे की चर्चा में श्रम मंत्री श्री आर्य द्वारा मीडियाकर्मियों की विभिन्न समस्याओं पर भी विस्तार पूर्वक बातचीत की गई। प्रतिनिधि मण्डल ने श्रम मंत्री श्री आर्य को जब यह बताया कि मीडिया संस्थानों में पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों का जमकर दोहन तथा शोषण किया जा रहा है, उन्हें न्यूनतम वेतन राशि देकर 12 से 14 घंटे तक काम लिया जाता है। साथ ही न तो उन्हें नाइट शिफ्ट अलाउंस दिया जाता है और न ही दुर्घटना बीमा अथवा चिकित्सा सुविधा का ही लाभ मिल रहा है। जिन साथियों ने मजीठिया वेतनमान को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली है उन्हें विभिन्न तरीकों से षड्यंत्र पूर्वक प्रताड़ित किया जा रहा है। इस पर श्री आर्य ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह तो घोर अन्याय है सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अक्षरश: पालन करवायेगी। पत्रकार बिना डरे अपने हक के लिए आगे आयें। सरकार उनको उनका हक दिलाने के लिए कटिबद्ध है।
ज्ञातव्य है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राज्य सरकारों से एक सक्षम श्रम अधिकारी की नियुक्ति कर समाचार-पत्र संस्थानों में मजीठिया वेतन आयोग के अनुसार पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को दिये जाने वाले वेतनमान की रिपोर्ट एक माह में तैयार करके माननीय न्यायालय के समक्ष तीन माह के भीतर प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। भोपाल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल के अध्यक्ष सलमान खान के नेतृत्व में श्रम मंत्री से मिले प्रतिनिधि मण्डल में विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों के पत्रकार एवं गैर पत्रकार साथी बड़ी संख्या में शामिल रहे।

Tuesday 19 May 2015

The Supreme Court of India order says

The Supreme Court of India order says:
All the State Governments acting through their
respective chief secretaries shall, within four weeks
from today, appoint Inspectors under Section L7 (b) of
the Working Journalists and other Newspaper Employees
(conditions of service) and Miscellaneous Provisions Act, 1955 to determine as to whether the dues and
entitlements of all categories of Newspaper Employees
including Journalists under the ‪#‎Majithia‬ Wage Board
award has been implemented in accordance with the terms
thereof. The inspectors appointed by the State
Government will- naturally exercise their powers as
provided under the Act and shall submit their report to
this Court through the Labour Commissioners of each
State indicating the precise findings on the issue
indicated above. This will be done within a period of
three months from the date of appointment under Section
l7 (b) of the Act.
The cases will-l be listed again after receipt
of the report as above stated.
All contentions with regard to maintainability
of the contempt petitions are kept open.
For 50 years or more such labour inspectors had existed but journalists wage board was never fully implemented. The main reason was that shop and factory inspectors held additional charge for overseeing the wage award in newspaper industry. Powerful press warlords browbeat the Chief Minister and thus paralyzed the wage award implementation process. This time also the Supreme Court had not written the adjective “Special” before the inspectors, but the meaning is very clear. Therefore, you must ensure that the labour inspectors under the Supreme Court order must complete their assignment before 27 August 2015 and submit their findings (to the Supreme Court) about wage payments in news paper offices. Use your pen power and union strength to see that these labour inspectors are not influenced, intimidated or bought over by owners. See that no labour inspector files fabricated and bogus report about the status of wage payment. For 50 long years no penal action was taken against guilty men in the press management. Not this time.
The IFWJ is also compiling facts about the number of journalists benefiting from the wage board. The state unions should, therefore, send the required information from different publication centers.
Our counsel will persuade the Supreme Court to fix hearing on these reports and also contempt petitions in the first week of September. There are 86 lawyers who appeared in the wage board case. Among them were senior advocate on record Comrade ‪#‎ParmanandPandey‬, who was once senior counsel of the UP Government, veteran ‪#‎ColinGansalves‬‪#‎UmeshSharma‬‪#‎SunitaBhardwaj‬ and‪#‎SavajeetThajur‬.
Please bring your report to the IFWJ working committee meeting at Bhubaneshwar on June 20 and 21.
With warm greetings and wishes for success.
Yours comradely
Ram P Yadav
Secretary Headquarter – I.F.W.J.
+91 9810623949

Monday 18 May 2015

Newspaper employees of Madhya Pradesh pledge to fight for Majithia Award


Prophets of doom have been proved wrong. They have been spreading rumours that there was no enthusiasm for the Wage Board Award among the newspaper employees. But on the contrary, hundreds of newspaper employees assembled to listen and interact with Advocates Parmanand Pandey and Colin Gonsalves on 16th May 2015 at Bhopal regarding the state of Majithia Wage Award. They wanted to know as to how to put across their grievances before the labour inspectors to be appointed by the state government on the direction of the Supreme Court. There is terrible mistrust among the employees towards the labour inspectors. They think, and rightly so, that the state officials behave as the handmaid of the newspaper proprietors and even the political leaders are afraid of taking the side of the employees.
 
Shri Pandey, who is also the Secretary General of the Indian Federation of Working Journalists, exhorted the employees to unionise to get their rights. It is the disunity of workers and their fear factor that is depriving them from their legitimate rights. He told them, at length, how the battle for the Award was fought and won. There was no need for them to be panicky. In any case, the State Governments would have to appoint the Labour Inspectors as per the direction of the Supreme Court.
 
They have only to inform the Labour Inspectors about the total number of employees- regular and contractual both, wages which they have been getting before and after the judgment. They must ask the labour inspectors to make a surprise visit to the offices of the newspapers to procure their balance sheets and advertisement tariffs. If there is any harassment like suspension, transfer or termination or change of service conditions, they must immediately bring it to the notice of inspectors and prevail upon them to make it the part the report. Labour Inspectors should be told, in no uncertain terms, that if any false report is submitted by them, it would put them in soup and therefore they should be doubly cautious about the factual position. No newspaper owner or the political bandicoot would come to their rescue if they fudge with factual position in their reports.
 
Shri Pandey promised them to send a detail advisory to them in a fortnight, which will help them in making the representations to the inspectors. This has to be done assiduously to make a foolproof case. A team of dedicated comrades has to work hard. Cheap publicity has to be avoided. Agents of managements, operating in different garbs and disguises, will spread misleading canards to distract the employees from their path. Therefore, they must guard against them.
 
Senior Supreme Court lawyer and noted Human Rights Activist Collin Gonsalves told he employees that in the past no Award was implemented by the owners because the governments have been sleeping over them but this time because of the intervention of the Supreme Court, it was going to be a reality. Employees must have to remain united and alert otherwise a battle that had been won might turn into a disaster. He was lavish in his praise to MS Yadav of the PTI Federation, who pulled all socks during the struggle for the Award and told the employees to show the similar grit and determination to achieve the benefits of the Award in their organisations. He wondered over the lack of unionisation in the newspaper industry.
 
There are dozens of registered unions of newspaper employees or journalists in Madhya Pradesh but they have never approached the Labour department of the state for any of the demands of the newspaper employees or media persons, bemoans an official of the State Labour Commissioner while talking to us in Bhopal. It sounds strange and shocking that many criminals and thugs are running the unions of journalists in Madhya Pradesh for their own protection and livelihood. They will talk of fourth estate but have not even heard of Wage Boards. They will flatter the officials for advertisements for their rags and behave like pimps of politicians to bluff their proximity with them. There is one senior journalist, who said that he would not share his grievance with some union leaders because they would pass it on to the proprietor of his newspaper to make some money.
 
There may be exaggeration in what he alleged but this perception about unions is certainly very painful and the unions will have to take initiative, in all seriousness, to purge such traders. Regrettably, the Patrakar Bhavan of Bhopal has been usurped by hoodlums and frauds. Successive governments have failed to restore it the rightful owners, the Bhopal Shramjeevi Patrakar Sangh, an affiliate of the IFWJ because it suits the governments to have goondas on their sides to browbeat the genuine journalists. Be that as it may, the Majithia Award has come as a boon for the real working journalists to unite and throw out the dishonest and selfish wolves roaming in the garb of sheep. 
 
It was pleasure to see a large number of women newspaper employees enthusiastically taking part in the meeting. Employees of Nayee Duniya, Nav Duniya, Dainik Bhaskar, Rajasthan Patrika are now up in the arms to achieve the Award. Salman Khan of the Bhopal Shramjivi Patrakar Sangh and the old and infirm Rajendra Kashyap was present all along in the meeting to keep the spirit of youngsters high. The undersigned vowed the employees that IFWJ would not leave any stone unturned to redeem their rights.




Friday 15 May 2015

sadhna singh

 क्वीन ऑफ कन्ट्रोवर्सी ” के पत्रकार को शिव सरकार ने मकान से किया बेदखल
मध्यप्रदेश की चर्चित और विवादास्पद महारानी साधना सिंह पर एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार को आर्टिकल लिखना भारी पड़ गया । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार.......
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मध्यप्रदेश की चर्चित और विवादास्पद महारानी साधना सिंह पर एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार को आर्टिकल  लिखना भारी पड़ गया । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने उक्त पत्रकार को मकान से  बेदखल करने का नोटिस प्रदेश के सबसे बड़े अखबार दैनिक भास्कर में अंदर के पन्नों पर प्रकाशित करवा दिया ।  उक्त पत्रकार का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपने आर्टिकल में इस बात का विशलेषण कर दिया था कि प्रदेश  के सबसे चर्चित घोटालों ड़पर कांड़ , व्यापम घोटाले , माईनिंग घोटाले में आखिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  की पत्नी श्रीमती साधना सिंह चौहान का नाम बार बार क्यों आ रहा हैं ?  इसके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन  सिंह , दिग्विजय सिंह की पत्नी का नाम किसी घोटाले में क्यों नहीं आया ।
गौरतलब हैं कि राजधानी से प्रकाशित हिन्दूस्तान टाइम्स में कार्यरत आशुतोष शुक्ला ने 13 जुलाई 2014 के अंक में  “ क्वीन ऑफ कन्ट्रोवर्सी  ”  लेख प्रकाशित किया था । उक्त लेख सरकार को नागवार गुजरा । मध्यप्रदेश शासन के संपदा विभाग ने कुछ ही दिनों बाद श्री शुक्ला के सरकारी आवास एफ- 119/52 पर नोटिस चिपका दिया । शुक्ला को आवंटित सरकारी आवास कंड़म हालत में हैं और वे काफी लंबे समय से सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उक्त आवास बदल दिया जाए । मजबूरन श्री शुक्ला काफी लंबे समय से किराये के आवास में रह रहे हैं । इस नोटिस को लेकर जब उन्होंने जनसम्पर्क विभाग के आयुक्त एस के मिश्रा से बात की तो उन्होंने कहा कि अब तक जो हो गया तो हो गया । आगे से नहीं होगा । श्री शुक्ला ने बताया कि जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों ने एक फार्म भरने के लिए दिया था जो मैंने भरकर जमा कर दिया था । उस वक्त भी मैंने आवास बदलने की रिक्वेस्ट की थी । कुछ दिनों बाद फिर घर खाली करने का नोटिस चिपका दिया , जबकि गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता के कार्यकाल के दौरान वेरिफिकेशन भी करवाया गया था । मैने फिर जनसंपर्क आयुक्त एस के मिश्रा से बात की तो उन्होंने फिर आश्वस्त किया कि सब ठीक हो जाएगा ।
ashutosh shukla अब हाल ही में भोपाल से प्रकाशित  दैनिक भास्कर के 18 अप्रैल के अंक में संपदा विभाग ने विग्यापन प्रकाशित  करवाया हैं ( देखें चित्र ) । जिसमें आशुतोष शुक्ला को मकान से बेदखल करने की कार्यवाही के बारे में बताया  गया है ।
 इस पूरे मामले पर हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार आशुतोष शुक्ला का कहना हैं कि जनसंपर्क आयुकत के  आश्वासन के बाद भी मुझे बार बार नोटिस देने की वजह क्या हैं ? बहुत सारी संस्थाए , व्यक्ति सरकारी मकानों में  रह रहे हैं क्या उनके खिलाफ विग्यापन सरकार ने अखबारों में प्रकाशित करवाए । एक पत्रकार का  घर सील किया गया है क्या मुख्यमंत्री या जनसंपर्क आयुक्त की सहमति के बिना यह संभव हैं । अगर सिर्फ मुझ पर कोई एक्शन होता हैं तो इसका मतलब हैं कि सरकार सिर्फ मुझे डराना चाहती हैं । मैं किसी के खिलाफ नहीं और न ही में किसी के पक्ष में हुँ । जो पत्रकारिता के सिध्दांत और अभिव्यक्ती की स्वतंत्रता है मैं उसके अनुरुप कार्य कर रहा हुँ ।

makhanlal


Friday 1 May 2015

थोड़ी बड़ी रपट है, मगर मेरा अनुरोध है कि इसे अवश्य पढ़ें... क्योंकि यह हम पत्रकारों की खबर है

थोड़ी बड़ी रपट है, मगर मेरा अनुरोध है कि इसे अवश्य पढ़ें... क्योंकि यह हम पत्रकारों की खबर है और यह न किसी अखबार में है, न किसी न्यूज चैनल में आ सकी है. आप इसे पढ़ें और ठीक लगे तो शेयर भी करें, ताकि नहीं छपने के बावजूद यह खबर हर जगह पहुंच सके.
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यह खबर प्रिंट मीडिया से जुड़े तमाम पत्रकारों के लिए है जो पांच सौ, हजार, पांच हजार औऱ दस हजार की सैलरी में अपने जीवन के महत्वपूर्ण साल उन अखबारों के लिए खर्च कर रहे हैं, जिन्हें उनकी एक रत्ती परवाह नहीं. हम ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी किस्मत को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे की रिपोर्ट तक अपने अखबार में छाप नहीं सकते. न ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के हमारे साथी हमारी इन खबरों को सामने लाने की हैसियत में हैं. इसके अलावा यह खबर उन तमाम लोगों के लिए भी है, जो समझते हैं कि हर मीडियाकर्मी लाखों में खेल रहा है और इतना पावरफुल है कि दुनिया बदल सकता है... उन साथियों के लिए तो है ही, जिनका बयान है... वो बेदर्दी से सर काटें औऱ मैं कहूं उनसे हुजूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता... यह खबर 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया आयोग के प्रस्तावों को लागू नहीं किये जाने के विरोध में हम पत्रकारों द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई की है... आप लोग इसे यह जानने के लिए भी पढ़ सकते हैं कि एक ओऱ जहां राहुल गांधी किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनकी पार्टी के कपिल सिब्बल, सलमान खुरशीद, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े-बड़े नेता अखबार कर्मियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अखबार मालिकों की पैरवी कर रहे हैं... यह खबर आइएफडब्लूजे के सचिव राम यादव ने लिखी है और इसे पुष्यमित्र जी ने अनुवाद किया है.......
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तीन महीने में जांच कर बतायें, मजीठिया लागू हुआ या नहीं
राम पी यादव, सचिव आइएफडब्लूजी
सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों द्वारा मजीठिया आयोग लागू किये जाने की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक वर्चुअल एसआइटी(स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) का गठन किया है जो तीन महीने में अपना आकलन कोर्ट में सौंपेगी.
कल(28 अप्रैल को) सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रंजन गोगोई और एनवी रमन्ना के सामने कई अखबारों के कर्मचारियों द्वारा दायर अवमानना याचिकाएं पेश हुई थीं. माननीय जज ने इन अवमानना याचिओं के जवाब में अखबार मालिकों द्वारा काउंटर एफिडेविट दाखिल नहीं किये जाने को लेकर कड़ा ऐतराज जाहिर किया था. जस्टिस गोगोई के चेहरे पर खिन्नता साफ नजर आ रही थी और उन्होंने कहा कि अब आगे से कोई काउंटर एफिडेविट स्वीकार नहीं किया जायेगा. वस्तुतः अखबार मालिक अपने पक्ष में देश के महंगे वकीलों को हायर करके यह सोच लिया था कि वे न्याय को अपने पक्ष में मोड़ लेंगे. अखबार मालिकों के पक्ष में श्री कपिल सिब्बल, श्री सलमान खुर्शीद, श्री अभिषेक मनु सिंघवी, श्री दुश्यंत पांडे और श्री श्याम धवन जैसे वकीलों के नेतृत्व में सौ से अधिक वकील कोर्ट रूम में खड़े थे और अदालत कक्ष इनकी वजह से पैक्ड हो गया था. वे मालिकों के लिए वक्त खरीदना चाहते थे, मगर अदालत ने उन्हें थोड़ा भी वक्त देने से इनकार कर दिया.
आइएफडब्लूजे (इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट) के महासचिव और सुप्रीम कोर्ट के वकील परमानंद पांडेय से लीड पिटिशन नं 411/2014 टाइटल 'अभिषेक राजा व अन्य बनाम संजय गुप्ता' के संबंध में जिरह शुरू करने कहा. इस मुकदमे में जागरण प्रकाशन लिमिटेड के सीइओ श्री संजय गुप्ता कंटेम्पटर/प्रतिवादी हैं.
श्री पांडेय ने बहस की शुरुआत करते हुए अदालत का ध्यान दो स्पष्ट तथ्यों की ओर आकर्षित किया. पहला, कि अवमानना याचिकाएं दायर करने के बाद अखबारों के मालिकों ने कर्मचारियों को प्रताड़ित करने का सिलसिला शुरू कर दिया है. कर्मचारियों का मनमाने तरीके से स्थानांतरण, निलंबन और निष्कासन किया जा रहा है, ऐसा करते वक्त प्राकृतिक न्याय के आधारभूत सिद्धांतों की अवहेलना की जा रही है. न शो-काउज नोटिस जारी किये जा रहे हैं, न आंतरिक जांच की जा रही है और न ही कोई आरोप पत्र पेश किया जा रहा है. उन्होंने माननीय न्यायाधीश से अपील की कि इस संबंध में अखबार मालिकों और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया जाये ताकि कर्मचारियों की प्रताड़ना पर रोक लग सके.
दूसरा, जागरण प्रबंधन श्रम कानूनों की अवहेलना करने का आदी रहा है. अखबार में वेज बोर्ड लागू करने की बात तो छोड़ दें ये कर्मचारियों से संबंधित हर श्रम कानून का उल्लंघन कर रहे हैं.
फिर श्री पांडेय ने जोरदार तरीके से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 2010 में जारी हुए इस वेज बोर्ड प्रस्तावों को चार साल से अधिक का वक्त बीत चुका है मगर प्रतिवादी ने अब तक वेज, अलाउंसेज और एरियर की राशि अखबार के कर्मचारियों को नहीं दी है. श्री पांडेय ने याचिकाकर्ताओं के सैलरी स्लिप माननीय न्यायाधीश के सामने पेश करते हुए कहा कि इन सैलरी स्लिपों से जाहिर है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले और बाद की सैलरी स्लिप की संरचना में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इस बिंदु पर जस्टिस रमन्ना ने जानना चाहा कि क्या यह स्थित सिर्फ याचिकाकर्ताओं की है या ऐसा सभी कर्मचारियों के साथ हो रहा है. वकील परमानंद पांडेय ने माननीय न्यायालय से कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, ऐसा हरेक कर्मचारी के साथ हो रहा है. श्री पांडेय ने फिर कहा कि प्रतिवादी संजय गुप्ता ने अपने काउंटर एफिडेविट में स्वीकार किया है कि उनकी कंपनी के 738 कर्मचारियों ने लिखित तौर पर अपनी स्वीकृति देते हुए कहा है कि वे जागरण प्रकाशन लिमिटेड के मौजूदा वैतनिक ढांचे से संतुष्ट हैं. वे, इस वजह से वेज बोर्ड द्वारा प्रस्तावित वेतन और अलाउंसेज नहीं चाहते हैं'. माननीय बेंच ने इस पर अपना आश्चर्य व्यक्त किया. इसके बाद बेंच एक मिनट के लिए एक दूसरे के करीब आ गयी और फिर जस्टिस गोगोई ने श्री पांडेय से पूथा कि क्या यह स्थिति दूसरे राज्यों और दूसरे अखबारों में भी है, इस पर श्री पांडेय ने सहमति जाहिर की.
बेंच यह जानकर सन्न रह गयी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकारें क्यों सोती रहीं, जबकि उन्हें मालूम था कि अखबार प्रतिष्ठान वेज बोर्ड लागू करने के इस फैसले को लागू नहीं कर रहे. फिर बेंच ने राज्य सरकारों को निर्देश देने का फैसला किया कि वे बेज बोर्ड प्रस्तावों को लागू करायें. इस बिंदू पर, वरिष्ठ अधिवक्ता और एक अन्य अवमानना याचिका की पैरवी करने वाले वकील श्री कॉलिन गोंजाल्विस ने अदालत से कहा कि दिल्ली सरकार इस संबंध में कुछ करना चाह रही है. उन्होंने यह भी कहा कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट का नियम 17बी सरकार को इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने का अधिकार देता है.
श्री पांडेय ने अपनी जिरह में उल्लेख किया कि वेज बोर्ड के प्रस्तावों को लागू करने के बदले लगभग सभी प्रबंधन जिसमें जागरण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड भी है, जिसको लेकर अभी बहस चल रही है, वे वेज बोर्ड प्रस्ताव के धारा 20जे के पीछे छिपने की कोशिश कर रहे हैं. श्री पांडेय ने उल्लेख किया कि धारा 20जे वास्तव में उन कर्मचारियों के लिए है जो वेज बोर्ड प्रस्तावों से अधिक वेतन पा रहे हैं, न कि उन कर्मियों के लिए जो प्रस्ताव से काफी कम पा रहे हैं. इस बिंदू पर जागरण प्रबंधन की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कपिल सिब्बल ने कहा कि धारा 20जे पूरी तरह वैध है, क्योंकि यह वेज बोर्ड प्रस्तावों का ही हिस्सा है.
बेंच एक बार फिर आपस में विमर्श करने लगी और फिर कहा कि हम राज्य सरकारों को निर्देशित कर रहे हैं कि वे स्पेशल ऑफिसरों की नियुक्ति करें जो इस मामले औऱ वेज बोर्ड प्रस्तावों को लागू किये जाने के मसले की जांच करें. इस बिंदू पर अखबार मालिकों की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जैसे, श्री कपिल सिब्बल, श्री अभिषेक मनु सिंघवी, श्री श्याम दीवान अपने पैरों पर खड़े हो गये और बेंच से अनुरोध करने लगे कि अगर ऐसा हुआ तो यह इंस्पेक्टर राज की वापसी जैसा होगा. हालांकि बेंच ने उनके अनुरोध को सुनने से इनकार कर दिया और राज्य सरकारों को स्पेशल ऑफिसर नियुक्त करने का निर्देश जारी कर दिया, जो रिपोर्ट तैयार करेंगे और उसे सीधे सुप्रीम कोर्ट में भेजेंगे. इस तरह, सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश अखबार कर्मचारियों के पक्ष में स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम गठित करने जैसा है.
श्री कपिल सिब्बल ने आम आदमी पार्टी द्वारा शासित दिल्ली सरकार के प्रयासों की बी आलोचना की इस पर एक वकील ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार निश्चित तौर पर कांग्रेस सरकारों से बेहतर काम करेगी. यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि वेज बोर्ड रिपोर्ट का नोटिफिकेशन तब हुआ था जब श्री कपिल सिब्बल और श्री सलमान खुरशीद आदि मनमोहन सिंह नीत केंद्रीय सरकार के कैबिनटे के सदस्य थे. अखबार मालिकों के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज में कांग्रेस के बड़े नेताओं की मौजूदगी से जाहिर हो जा रहा है कि उनकी पक्षधरता किस ओर है. यहां यह जानना भी कम रोचक नहीं है कि श्री कपिल सिब्बल जहां जागरण प्रकाशन की पैरवी कर रहे हैं, वहीं उनके पुत्र अमित सिब्बल जो स्वयं एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, वे दैनिक भास्कर की पैरवी कर रहे हैं
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