Monday 30 March 2015

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मुख्यमंत्री जी हमारी भी सुनों
भोपाल कलेक्टर द्वारा अवैधानिक तरीके से पत्रकार भवन की लीज निरस्त करने एवं जनसम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा द्वार भू - माफिया से सांठ - गांठ कर पत्रकार भवन को षड्यंत्र पूर्वक तरीके से हड़पने के विरोध में मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के बैनर तले प्रांताध्यक्ष साथी शलभ भदौरिया और कार्यकारी अध्यक्ष साथी शरद जोशी के नेतृत्व में प्रदेशव्यापी आंदोलन के प्रथम चरण में 17 अप्रेल को प्रदेश के श्रमजीवी पत्रकारों द्वारा मुख्यमंत्री के निवास पर जंगी प्रदर्शन और मुख्यमंत्री का घेराव किया जाएगा।
सवाल यह कि प्रदेश के श्रमजीवी पत्रकारों में सरकार के रवैये को लेकर आक्रोश क्यों है और पत्रकार भवन विवाद की वास्तविकता क्या हैँ ? क्या जनसंपर्क आयुक्त एस के मिश्रा ने मुख्यमंत्री जी को गुमराह किया है यदि हां तो क्यों ?
पत्रकार भवन की कहानी :
अपनी आन - बान और शान के लिए विख्यात पत्रकार भवन का शिलन्यास 16 फरवरी 1969 को हुआ। 70,80 एवं 90 के दशक में इस भवन की तूती बोलती थी। यहां बैठने वाले पत्रकारो का सत्ता में डंका बजता था और शासन - प्रशासन में बैठे लोग इसके नाम से थर्राते थे। लेकिन इसके सुंदर स्वरूप और भव्यता ने कुछ लोगों के दिलो - दिमाग़ में लालच का ऐसा फितूर भरा की देखते ही देख्ते यह आलीशान इमारत विवादों की चपेट में आ गयी। इसके संस्थापकों ने शायद सपने में भी नही सोचा होगा की उनकी ईमानदारी - मेहनत और लगन से खड़ी की गयी यह आलीशान इमारत कभी अपने वजूद पर आंसू बहाएगी और सजायाफ्ता लोग इस पर अपनी दावेदारी ठोंकेगे।
विवाद का कारण:
दरअसल 1969 में शासन ने पत्रकार भवन के लिए जो भूमि लीज पर दी थी वह वर्किंग जर्नालिस्ट यूनियन के नाम पर है लेकिन 1969 में बने पत्रकार भवन समिति के संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ से संबद्ध मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ की जिला इकाई भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संध के सदस्य ही पत्रकार भवन समिति के सदस्य होंगे। वर्किंग जर्नालिस्ट यूनियन भोपाल ( अंग्रेजी में ) यानी भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संघ ही पत्रकार भवन समिति की मूल संस्था है। भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्य ही पत्रकार भवन समिति के सदस्य के रूप में कार्यसमिति के सदस्य का चुनाव लड़तें है। लेकिन पत्रकार भवन समिति का विवाद उस समय गहरा गया जब सहायक पंजीयक फर्म एवं सोसायटी ने पत्रकार भवन समिति के संविधान को नकारते हुए श्री शलभ भदौरिया की अध्यक्षता वाली समिति के 31 जनवरी 2014 के निर्वाचन को ना मानते हुए ऐसे लोगों की समिति को मान्यता दे दी जो भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्य ही नही है। सहायक पंजीयक भोपाल द्वारा आदेश क्रमांक 2005/14 दिनांक 19/6/2014 को लिए निर्णय के विरूद्ध पंजीयक महोदय के न्यायालय में अपील क्रमांक 16/14 का प्रकरण विचाराधीन है। यह जानते हुए कि माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने वर्ष 2010 में रिट याचिका क्रमांक 14588/2007 "श्री शलभ भदौरिया, अध्यक्ष पत्रकार भवन समिति, भोपाल विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन व अन्य" की यचिका पर दिनांक 6/5/2010 को निर्णय सुनाते हुए पत्रकार भवन समिति के पंजीयन को बहाल किया था एवं शासन को पत्रकार भवन समिति के चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा याचिका क्रमांक 14588/2007 को निराकृत करते हुए यह भी निर्धारित किया गया था कि पत्रकार भवन समिति संस्था शासन से वित्त पोषित संस्था नहीं है अत: शासन को पत्रकार भवन के कार्यों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। जनसंपर्क आयुक्त द्वारा कलेक्टर भोपाल को पत्रकार भवन की लीज निरस्त करने हेतु पत्र लिखकर माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना की गयी है।
पत्रकार भवन के प्रकरण में श्री शलभ भदौरिया के आवेदन पर माननीय उच्च न्यायालय ने पंजीयक महोदय को तीन माह में निर्णय लेने के लिए निर्देशित किया था , माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में शासन ने भी गुण -दोष के आधार पर निर्णय सुनाने के लिए पंजीयक महोदय को पत्र लिखा है।
इससे पूर्व लगभग 12 वर्षो तक श्री शलभ भदौरिया शासन से उच्च न्यायालय में पत्रकार भवन के लिए अकेले संघर्ष करते रहे।
यहां बता दें कि उस समय भी शासन ने पत्रकार भवन को हड़पने की नाकाम कोशिश की थी। ज्ञात रहे कि लगभग 12 वर्षो तक पत्रकार भवन शासन के कब्जे में रहा था। सवाल यह है कि आज पत्रकार भवन पर दावेदारी करने वाले कथित लोग उस समय कहां थे ?
इसी प्रकार लीज के प्रकरण में प्रारंभ से ही मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ ही पक्षकर था लेकिन एक वर्ष तक लीज का प्रकरण ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और अचानक जनसम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा ने अपने अधिकार के बाहर जाकर, पद का दुरूपयोग करके २२ दिसंबर २०१4 को भोपाल कलेक्टर को एक पत्र लिखा और कलेक्टर ने आनन - फानन में पत्रकार भवन की भूमि की लीज निरस्त करने का फैसला सुना दिया।
जबकि पत्रकार भवन के कब्जे को लेकर धारा 145 दण्ड प्रक्रिया सहिंता के तहत एक प्रकरण एसडीएम कोर्ट में अभी लंबित है, जिला न्यायालय में भी प्रकरण विचाराधीन है।
कानून के जानकारों का कहना है कि जब तक पत्रकार भवन के प्रकरण न्यायालय में लंबित है शासन का हस्तक्षेप न्याय विरूद्ध है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ठ है कि पत्रकार भवन और पत्रकार भवन समिति की मूल संस्था मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ की जिला इकाई भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संघ ही है। जो भी कतिपय लोग पत्रकार भवन और समिति में अपनी दावेदारी कर रहे है उसके पीछे का कारण सहायक पंजीयक का गलत निर्णय है जिसके विरोध में श्री शलभ भदौरिया पंजीयक महोदय के न्यायालय में अपील में हैं। मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संध का अंग्रेजी अनुवाद एम पी वर्किंग जर्नालिस्ट यूनियन के उपयोग करने पर श्री शलभ भदौरिया पूर्व से माननीय उच्च न्यायालय में हैं। एम पी हटवाने मे श्री शलभ भदौरिया को सफलता मिल चुकी है। कहने का आश्य यह है की नियम अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा में किसी भी संघ का अनुवाद करके उसके नाम का उपयोग नही कर सकता।
क्या चाहते हैं जनसम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा और क्यों :
दरअसल भू - माफिया की पत्रकार भवन की भूमि पर वर्षों से नजऱ है और वह हर कीमत पर इसे हतियाना चाहता है। ऐसी चर्चा है कि एस के मिश्रा की भू - माफिया से सांठ - गांठ है और वह पत्रकार भवन की भूमि पर भव्य भवन बनाकर भू - माफिया को सौंपना चाहते हैं। एस के मिश्रा के भू - माफिया से संबधों की जांच हो जाए तो बड़ा मामला उजागर हो सकता है।
एस के मिश्रा ने सोची - समझी साजिश के तहत श्रमजीवी पत्रकार संघ को गुमराह करके इस बात की सहमति ली की वह पत्रकार भवन को तोड़कर संघ की इच्छा अनुसार नया भवन बनाना चाहते है। श्रमजीवी पत्रकार संघ ने भी पत्रकार भवन के हित में सहर्ष नया भवन बनाने के लिए अपनी सहमति दे दी। लेकिन जिस प्रकार से एस के मिश्रा ने अपने पद का दुरूपयोग कर पत्रकार भवन की लीज़ निरस्त करवाई और पत्रकार भवन पुनर्निर्माण कमेटी में श्रमजीवी पत्रकार संघ की अनदेखी कर सजायाफ्ता मुजरिमों को रखा उससे संघ को उनकी नियत पर संदेह हुआ।
जनसंपर्क आयुक्त का षड्यंत्र :
जनसम्पर्क आयुक्त जानते हैं कि भोपाल के पत्रकार कई गुटों में बटे हुए है। एस के मिश्रा पत्रकारों की गुटबाजी का लाभ उठाने के लिए जनसम्पर्क विभाग से पोषित कथित पत्रकारों को अपना मोहरा बनाकर जानबूझकर ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कराना चाहते हैं जिससे पत्रकार भवन का मामला विवाद में पड़ जाऐ, बाद में पूर्वनियोजित योजना अनुसार किसी बिल्डर को सौंप दिया जाए।
यहां बता दें कि मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ प्रदेश में श्रमजीवी पत्रकारों की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित संस्था है जिसके पूरे प्रदेश में लगभग पांच हज़ार सदस्य हैं एवं संघ के अध्यक्ष श्री शलभ भदौरिया हैं। संघ और उसके नेता की लोकप्रियता से भयभीत होकर वा बौखलाकर कथित पत्रकारों की एक गैंग समय - समय पर श्रमजीवी पत्रकार संघ और संघ के अध्यक्ष श्री शलभ भदौरिया के विरूद्ध षडय़ंत्र रचते रहे हैं, उसमे एस के मिश्रा जैसे लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते रहे हैं। वर्तमान में पत्रकार भवन के मामले में जो कुछ भी चल रहा है उसमें सरकारी प्रतिनिधि के तौर पर एस के मिश्रा की भूमिका सिर्फ और सिर्फ श्रमजीवी पत्रकार संघ को कमजोर करने की है। सवाल यह उठता है कि अपने आपको मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का करीबी बताने वाले एस के मिश्रा श्रमजीवी पत्रकारों के इतने बड़े संघ को कमजोर करने का नाकाम षड्यंत्र करके क्या साबित करना चाहते हैं ? जबकि मुख्यमंत्री जी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी पार्टी के लगभग 11 वर्ष के कार्यकाल में मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ ने सरकार विरोधी कोई आंदोलन नही किया बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी की सरकार द्वारा समय - समय पर श्रमजीवी पत्रकारों के हित में लिए गए निर्णयों का स्वागत किया है। फिर क्या कारण है कि जिम्मेदार पद पर बैठे जनसंम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करके श्री शलभ भदौरिया और श्रमजीवी पत्रकार संघ की लोकप्रियता से भयभीत चंद सजायाफ्ता अपराधियों को मोहरा बनाकर पत्रकारों के एक बड़े वर्ग को यह संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि वर्तमान सरकार पत्रकार विरोधी है। कानून - कायदों को ताक़ में रखकर जिस प्रकार से एस के मिश्रा की पत्रकार भवन के मामले में जो भूमिका है उससे निश्चित रूप से पत्रकारों में यही संदेश जाएगा कि यह सरकार पत्रकार विरोधी है।
लेकिन मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ इस पत्रकार भवन को मिटाने या हड़पने के षड्यत्रों को कभी भी पूरा नही होने देगा और पूरी ताकत के साथ लोकतांत्रिक तरीके से इसका विरोध करेगा। पत्रकार भवन पत्रकारों की संपत्ति है और रहेगी, अब इसका पुनर्निर्माण पत्रकार स्वयं करेंगे।
जांच के बिन्दू :
1 - जनसम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा ने किस अधिकार से कलेक्टर पर दबाव बनाने के लिए पत्रकार भवन की लीज निरस्त करने का पत्र लिखा ?
2 - क्या जनसम्पर्क आयुक्त का पत्रकार भवन की लीज निरस्त करने संबधी लिखा गया पत्र माननीय उच्च न्यायलय के उस आदेश की अवहेलना नही है जिसमें माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा याचिका क्रमांक 14588/2007 को निराकृत करते हुए यह भी निर्धारित किया था कि पत्रकार भवन समिति संस्था शासन से वित्त पोषित संस्था नहीं है अत: शासन को पत्रकार भवन के कार्यों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
3 - क्या जिन कतिपय लोगों ने कलेक्टर के सामने खड़े होकर अपने आप को पत्रकार भवन का मालिक बताया उनके पत्रकार भवन के मालिक होने की पुष्टि की गयी ?
4 - क्या जनसम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा सजायाफ्ता अपराधियों को पत्रकार होने का प्रमाण पत्र देकर उन्हें संरक्षण नही दे रहे हैं ?
5 - क्या सहायक पंजीयक फर्म एवं संस्थाएं, भोपाल द्वारा पत्रकार भवन समिति को मान्यता देने में पत्रकार भवन समिति के संविधान की अनदेखी की गयी ?
5 - क्या माननीय उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में श्री शलभ भदौरिया, अध्यक्ष पत्रकार भवन समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए भवन समिति के चुनाव कराने का निर्णय सुनाया था ?
हमारी मांगे :
1- पत्रकार भवन की लीज बहाल करें।
2 - पद का दुरूपयोग करने वाले जनसंपर्क आयुक्त के विरूद्ध कार्यवायी की जाए।
 

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