Saturday 28 March 2015

patkerbhawan

आलोक सिंघई-
मध्यप्रदेश सरकार ने पत्रकारों की बरसों पुरानी अभिलाषा को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। राजधानी के पत्रकारों की पहल पर उसने मालवीय नगर स्थित पत्रकार भवन को दुबारा बनाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली है। इसके साथ ही बरसों पुराना वह काला अध्याय समाप्त हो गया है जिसके चलते मध्यप्रदेश को अपने विकास की मंहगी कीमत चुकानी पड़ी है। अब तक जो पत्रकारिता सत्ता के दलालों के इशारों पर कोठे की कठपुतली की तरह नाचती रही वह अब संवाद के बेहतर मंच का रूप लेने जा रही है। सबसे सुखद बात तो ये है कि ये पहल पत्रकारों की ओर से ही हुई जिसे सरकार ने अपना दायित्व समझकर अपने हाथों में ले लिया। विगत 27 मार्च को आयोजित पत्रकारों की बैठक में जो सुझाव सरकार को दिए गए उससे मध्यप्रदेश के पत्रकारों की दशा और दिशा भी बदलने जा रही है। इस नए कदम का जो ब्लू प्रिंट अब तक सामने आया है उससे साफ नजर आ रहा है कि भविष्य में मध्यप्रदेश सुशासित राज्यों की आधुनिक पत्रकारिता के लिए भी पहचाना जाएगा। अब तक की पत्रकारिता के लगभग बीस साल पुराने काले अध्याय को समाप्त करने में पत्रकारों जो मंहगी कीमत चुकाई है उसे देखते हुए ये एक सुखद शुरुआत कही जा रही है।
पत्रकारों और सरकार के बीच पुल का काम करने वाले जनसंपर्क विभाग ने सुझावों के लिए जो बैठक बुलाई उससे पत्रकारों ने महसूस कर लिया है कि सरकार स्वस्थ संवाद के नेटवर्क की स्थापना के लिए कितनी गंभीर है। मुख्यमंत्री के सचिव और जनसंपर्क आयुक्त एस.के.मिश्रा ने आधुनिक मध्यप्रदेश के नवनिर्माण के इस कदम को पूरी मजबूती से स्वीकार किया है। बरसों से कांग्रेसी सरकारें इस भवन का इस्तेमाल पत्रकारों को हांकने के लिए करती रहीं हैं। उसके बाद आई भाजपा की सरकारों ने भी एक दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद ये पहल की है। अब तक सरकारें ये कहकर अपना पल्ला झाड़ती रहीं हैं कि ये पत्रकारों के आपस का मामला है हम इसे सुलझाने के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते। इसके बावजूद राजधानी और प्रदेश के सैकड़ों पत्रकार बार बार सरकार को समझाने की कोशिश करते रहे कि ये पत्रकारों का आपसी मामला नहीं है बल्कि प्रदेश के विकास से जुड़ा सीधा मसला है। बजट की चोरी करने वाला माफिया अब तक इस भवन पर कब्जा जमाए अपने पिल्लों के माध्यम से जागरूक प्रेस को गुमराह करता रहा है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश आज तक उत्पादकता की रफ्तार नहीं पकड़ सका है। मध्यप्रदेश के विकास में किसानों ने तो भरपूर योगदान दिया लेकिन औद्योगिक उत्पादन, खेल, शिक्षा स्वास्थ्य सभी मोर्चों पर प्रदेश आज भी पिछड़ेपन के कलंक से आजाद नहीं हो पाया है। सरकारी तंत्र तो सबसे ज्यादा शोषक की भूमिका में आ गया। नौकरियां बेचती पिछली सरकारों ने जरूरत से ज्यादा कर्मचारियों को भर्ती करके मध्यप्रदेश के खजाने का भट्टा बिठा दिया था। रोजगार के नाम पर अनुत्पादक सरकारी तंत्र को लादकर खजाने को बेइंतिहा लूटा गया। इसका खमियाजा वर्तमान सरकार को उठाना पड़ रहा है। सरकार जब भी उत्पादकता बढ़ाने की बात करती है तो उसे मोटे वेतन और पेंशन का सुख भोगते सरकारी तंत्र की अनुत्पादकता खीज पैदा करती है। वहीं बड़ी तादाद में ऐसा युवा वर्ग है जो खाली हाथ बैठा है। बेरोजगारी ने उनके अरमानों को मानों ग्रहण लगा दिया है। इसके बावजूद उसे कोई राह नहीं सूझ रही है।
पत्रकारों से इस दृष्टिकोण की उम्मीद की जाती रही है कि वे प्रदेश के भविष्य को लेकर कोई स्वस्थ संवाद स्थापित करेंगे। इसके बावजूद मध्यप्रदेश की प्रेस महज उलट पुलट ख्वाब दिखाकर सच्चाई से मुंह चुराती रही है। पत्रकारिता के व्यवसाय में आई बेरोजगारों की फौज सरकार से विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के नाम पर रकम तो ऐंठती रही लेकिन उसने सरकार को हालात बदलने के लिए कोई प्रभावी सहयोग नहीं किया। जिन्होंने अखबार और चैनल समूहों पर कब्जा जमा लिया वे सरकार को ब्लैकमेल करने में जुटे रहे और पत्रकार भवन उनके लिए सुविधाजनक अड्डा बना रहा। अब सरकार के सामने नतीजे लाने की चुनौतियां बढ़ती जा रहीं हैं। यथास्थिति में ज्यादा फेरबदल न कर पाने वाली मौजूदा सरकार पर व्यावसायिक मंडल परीक्षाओं की धांधली का कलंक भी लग गया। दोषियों को सजा दिलाने का काम तो आरंभ है ही पर अब उसके सामने मजबूरी आ गई है कि वह जनता के सामने स्थायी सुशासन की व्यवस्था करे।
इस दिशा में पत्रकार भवन का पुर्ननिर्माण एक प्रभावी पहल समझा जा रहा है। पत्रकार भवन के नाम पर अब तक 27007 वर्गफीट जमीन आबंटित थी जिसके साथ अब लगभग तीस हजार वर्गफीट का खाली पड़ा मैदान और लगभग अस्सी हजार फीट की झुग्गी बस्ती भी शामिल की जा रही है। मालवीय नगर जैसे व्यावसायिक केन्द्र के नजदीक ये जमीन बहुत कीमती और जनोपयोगी है जिसे पत्रकार भवन के नाम पर घूरा बनाकर रखा गया। मौजूदा भवन के रखरखाव के नाम पर बरसों से चंदाखोरी करते रहे सत्ता माफिया के पिल्लों ने भवन की वो दुर्गति कर डाली कि कभी पत्रकारों की धरोहर समझा जाने वाला भवन लगभग धराशायी होने की कगार पर आ गया है।
भवन के कायाकल्प की नींव रखने वाले राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार अवधेश भार्गव, एन.पी.अग्रवाल, राधावल्लभ शारदा, विनोद तिवारी और इनके पीछे खड़े सैकडों वरिष्ठ और कनिष्ठ पत्रकारों ने इस अभियान को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इनके सहयोग से तैयार जो प्रस्ताव परामर्श समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया उसमें इस स्थान पर बनने वाली संरचना के कई लाभ गिनाए गए हैं। कहा गया है कि इस स्थान पर बनने वाली लगभग दस मंजिला इमारत में होटल और आफिस बनाए जा सकते हैं जिससे निर्माण की लागत तो निकलेगी ही साथ में पत्रकारों की गतिविधियों के लिए स्थायी फंड भी स्थापित किया जा सकेगा। इन आफिसों में चैनलों और अखबारों के दफ्तर भी बनाए जा सकेंगे जो बरसों से दूरदराज के भवनों में किराए से चल रहे हैं। विशाल कांफ्रेंस हाल भी बनाया जाएगा जो प्रदेश से सीधे संवाद स्थापित करने में सहयोगी साबित होगा। यहां बनने वाले कांफ्रेंस हाल में पत्रकार भवन की नींव रखने वाले और महत्वपूर्ण योगदान देने वाले दिवंगत पत्रकार साथियों के चित्र लगाए जाएं। पत्रकार भवन से होने वाली आय का उपयोग रखरखाव के लिए तो किया ही जाए साथ में पत्रकार कल्याण कोष भी स्थापित किया जाए। इस कोष के लिए आय का पच्चीस प्रतिशत वार्षिक योगदान किया जाए। पत्रकारिता की ट्रेड यूनियन गतिविधियों के लिए पुरस्कार की स्थापना की जाए जिससे युवा पत्रकारों में सामाजिक सरोकारों के प्रति लगाव बढ़ाया जा सके। कार्यशालाओं और गोष्ठियों के संचालन के लिए भी व्यय इसी आय से किया जाए।
व्यवस्था के संचालन के लिए पत्रकारों की 21 सदस्यीय समिति बनाई जाए जिसमें अध्यक्ष पत्रकारों में से हो और आयुक्त जनसंपर्क या उसकी ओर से नामित व्यक्ति पदेन सचिव बनाया जाए। ये समिति दो सालों के लिए गठित की जाए। पहली समिति में वर्तमान पत्रकार भवन समिति के पदाधिकारियों को लिया जाए ताकि वे व्यवस्था के संचालन की स्थायी व्यवस्था कर सकें। यही समिति कल्याण कोष, रखरखाव, संगोष्ठी, कार्यशाला, प्रेस कांफ्रेंस, मीट द प्रेस, आदि के लिए उपसमितियों का गठन करे। हिसाब किताब के ब्यौरे को समिति में ही मंजूरी दी जाए। होटल के संचालन के लिए मप्र पर्यटन विकास निगम को अनुबंधित किया जा सकता है। पत्रकारों को होटल के कमरों में पचास प्रतिशत रियायत और कैटरिंग में बीस प्रतिशत रियायत दी जाए। शासन के सभी अधिकारियों को होटल में रुकने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। शादी गार्डन के रूप में इस स्थान का उपयोग न किया जाए। किसी पत्रकार संगठन को कार्यालय के लिए स्थान न दिया जाए केवल पत्रकारिता के लिए ही इस ढांचे का इस्तेमाल हो। पत्रकार कल्याण कोष की राशि का इस्तेमाल पत्रकार की मृत्यु होने या बीमारी की हालत में समिति के निर्णय के अनुसार किया जाए।
बैठक में कुछ पत्रकारों ने जब भवन में पत्रकार संगठनों को स्थायी कमरे दिए जाने की मांग उठाई तो पत्रकारों ने ही ये कहकर विरोध किया कि इस ढांचे को नेतागिरी का अखाड़ा बनाए जाने के स्थान पर केवल स्वस्थ संवाद के मंच के रूप में इस्तेमाल किया जाए। जाहिर है अब तक पत्रकारों ने जिस गंदगी और कलंक का बोझा ढोया है उसे वे दुबारा अपने माथे पर नहीं बिठाना चाहते हैं। सरकार ने इस मुश्किल गुत्थी को सुलझाने की दिशा में जो कदम बढ़ाए हैं उसका श्रेय उसे जरूर दिया जाएगा। जिन पत्रकारों ने इस स्वर्णिम स्वप्न के लिए अपनी आहुतियां दी हैं उन्हें भी आधुनिक मध्यप्रदेश का इतिहास जरूर याद रखेगा। अब समय आ गया है जब पुराने भवन को गिराकर नए भवन का निर्माण जल्दी से जल्दी प्रारंभ किया जाए ताकि बरसों से गड़बड़ाया स्वस्थ पत्रकारिता का माहौल एक बार फिर स्थापित हो सके।

No comments:

Post a Comment